आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित मुक्तिका…अचेतन है ज़िंदगी… )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 98 ☆
☆ मुक्तिका…अचेतन है ज़िंदगी… ☆
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बँधी नीलाकाश में
मुक्तता भी पाश में
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प्रस्फुटित संभावना
अगिन केवल ‘काश’ में
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समय का अवमूल्यन
हो रहा है ताश में
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अचेतन है ज़िंदगी
शेष जीवन लाश में
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दिख रहे निर्माण के
चिन्ह व्यापक नाश में
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मुखौटों की कुंडली
मिली पर्दाफाश में
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कला का अस्तित्व है
निहित संगतराश में
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
११.५.२०१६, ६.४५
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