हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 143 ☆ चिंतन – मेरी-आपकी कहानी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक अविस्मरणीय एवं विचारणीय आलेख  “चिंतन – मेरी-आपकी कहानी”।)  

☆ आलेख # 143☆ चिंतन – मेरी-आपकी कहानी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

वियतनाम युद्ध से वापस अमेरिका लौटे एक सैनिक के बारे में यह कहानी प्रचलित है। लौटते ही उसने सैन-फ्रांसिस्को से अपने घर फोन किया। “हाँ पापा, मैं वापस अमेरिका आ गया हूँ, थोड़े ही दिनों में घर आ जाऊंगा पर मेरी कुछ समस्या है. मेरा एक दोस्त मेरे साथ है, मैं उसे घर लाना चाहता हूँ। “

“बिलकुल ला सकते हो. अच्छा लगेगा तुम्हारे दोस्त से मिलकर “

“पर इससे पहले की आप हां कहें, आपको उसके बारे में कुछ जान लेना चाहिए, ‘वियतनाम में वह बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था, उसका पैर एक बारूदी सुरंग पर पड़ गया और वह एक हाथ और एक पैर गवां बैठा’. अब उसका कोई ठिकाना नहीं है, समझ नही आता की वो अब कहाँ जाए। सोचता हूँ जब उसका कोई आसरा नहीं है तो क्यों ना वह हमारे साथ रहे।””बहुत बुरा लगा सुनकर, चलो कुछ दिनों में उसके रहने का बंदोबस्त भी हो जाएगा, हम लोग इंतजाम कर लेंगे।”

“नहीं, कुछ दिन नहीं, वो हमारे साथ ही रहेगा, हमेशा के लिए।”

“बेटा” पिता ने गंभीर होकर कहा, “तुम नहीं जानते की तुम क्या कह रहे हो। हमारे परिवार पर बहुत बड़ा बोझ पड़ जाएगा अगर इतना ज़्यादा विकलांग इन्सान हमारे साथ रहेगा तो। देखो, हमारा अपना जीवन भी तो है, अपनी जिंदगियाँ भी तो जीनी हैं ना हमें…नहीं, तुम्हारी इस मदद करने की सनक हमारी पूरी ज़िंदगी में बाधा खड़ी कर देगी। तुम बस घर लौटो और भूल जाओ उस लड़के के बारे में। वो अपने दम पे जीने का कोई ना कोई रास्ता खोज ही लेगा।”

लड़के ने फोन रख दिया, इसके बाद उसके माता-पिता से उसकी कोई बात नहीं हुई। बहरहाल, कुछ दिनों बाद ही, सैन-फ्रांसिस्को पुलिस से उनके पास कॉल आया। उन्हें बताया गया की उनके बेटे की एक बहुमंजिला इमारत से गिरकर मृत्यु हो गई है। पुलिस का मानना था की यह आत्महत्या का मामला है। रोते-बिलखते माता पिता ने तुरंत सैन-फ्रांसिस्को की फ्लाईट पकड़ी जहाँ उन्हें मृत शरीर की पहचान करने शवगृह ले जाया गया।

शव उन्ही के बेटे का था, पर उनकी हैरानी की सीमा नहीं रही, जब उन्होंने कुछ ऐसा देखा जिसके बारे में उनके बेटे ने उन्हें नहीं बताया था, उसके शरीर पर एक हाथ और एक पैर नहीं था।

इस बूढे दम्पत्ति की कहानी मेरी-आपकी ही कहानी है। खूबसूरत, खुशनुमा और हँसते-खिलखिलाते लोगों के बीच जीना काफी सरल होता है। पर हम उन्हें पसंद नहीं करते जो हमारे लिए असुविधा पैदा कर सकते हैं या हमें कठिनाई भरी स्थिति में डाल सकते हैं। हम उनसे दूर ही रहते हैं जो इतने सुंदर, स्वस्थ और बुद्धिमान नहीं होते, जितने की हम हैं।पर सौभाग्य से कोई है, जो हमें इस तरह नहीं छोडेगा।

साहस प्रेम प्यार कमजोरी जीवन कोई है, जिसका प्रेम किसी भी शर्त के परे है, उसके परिवार में हर परिस्थिति में हमारे लिए अत है, चाहे हमारी हालत कितनी ही बुरी क्यों ना हो।क्या हम उसी की तरह लोगों को वैसा ही स्वीकार नहीं कर सकते जैसे की वो हैं? उनकी हर कमी, हर कमजोरी के बावजूद?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈