श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता  – शिल्पी ! ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 170 ☆  

? कविता  – शिल्पी ! ?

स्पंदन, सृजन के
बुद्धि, श्रम से सजे ,
वंदन, नमन हे शिल्पी तुझे
उजाले बसंती, विश्वास के,
चंदन , तिलक हे शिल्पी तुझे
उत्पादन विपुल,
लक्ष्य आकाश से .
विजय माल अर्पित , शिल्पी तुझे
धन्य जग , प्रफुल्लित संसार ये ,
कीर्ति, यश, मान से, शिल्पी तेरे
सपने सुनहरे राष्ट्र निर्माण के ,
प्रगतिशील होते साकार से
आशान्वित कल के,
आधार हे अभिनन्दन हमारा शिल्पी तुझे
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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