प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “क्या है जिंदगी अपनी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 89 ☆ ’’क्या है जिंदगी अपनी…”  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सुना है, लोग कहते है, ये दुनियाँ एक सपना है

अगर ये सच है तो फिर सच में कहो क्या है जिंदगी अपनी।।

 

जमाने में तो बिखरे हैं कहीं आँसू कहीं खुशियाँ  

इन्हीं संग बितानी पड़ती है सबको जिन्दगी अपनी।।

 

है छोटी जिंदगी कीमत बड़ी पर श्रम समय की है

सजाते है इसी पूंजी से हम सब जिंदगी अपनी।।

 

समझते नासमझ कम है यहाँ पर मोल माटी का

सजानी पड़ती माटी से ही सबकां जिंदगी अपनी।।

 

है जीवन तीर्थ सुख-दुख वाली गंगा जमुना का संगम

तपस्या में खपानी पड़ती सबकों जिंदगी अपनी।।

 

कहानी है अजब इस जिंदगी की, कहना मुश्किल है

कहें क्या कोई किसी से कैसी है ये जिंदगी अपनी ?

 

कोई तो है जो इस दुनियाँ को चुप ढंग से चलाता है

निभानी पड़ती है मजबूरियों में जिंदगी अपनी।।

 

यहाँ सब जो कमाते हैं सभी सब छोड़ जाते हैं

नहीं ये दुनियाँ अपनी है, न ही ये जिंदगी अपनी।।

 

हरेक की दृष्टि अपनी है, हरेक का सोच अपना है

अगर कुछ है नहीं अपना तो क्या यह जिंदगी अपनी ?

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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