श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “भुट्टे का मजा”।)
☆ कथा कहानी # 145 ☆ लघुकथा – भुट्टे का मजा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
हम दस बारह बुड्ढे पार्क में रोज मिलते हैं, बैठकर बतियाने की आदत है। कभी अच्छे दिन पर चर्चा चलती है, कभी मंहगाई पर, तो कभी महिलाओं के व्यवहार पर। दो चार बुड्ढे पुराने पियक्कड़ हैं, दारू की बात पर अचानक जवान हो जाते हैं, दो तीन बुड्ढे पत्नी पीड़ित हैं, और एक दो को भूलने की बीमारी है,दो तीन मोदी के अंधभक्त हैं। एक दो तो ऐसे हैं कि मोतियाबिंद के आपरेशन करा चुके हैं पर पार्क में आंख सेंकने आते हैं।
बैठे ठाले एक दिन बुड्ढों ने भुट्टे खाने का प्रोग्राम बना लिया।पाठक दादा ने आफर दिया भुट्टे हम अपने अंगने में भूनकर सबको खिलायेंगे। मुकेश और बसंत बुड्ढों ने कहा कि पड़ाव से हम दोनों देशी भुट्टे छांटकर लायेंगे।महेश को देखकर सबको गलतफहमी होती थी कि ये आधा जवान और आधा बुड्ढा सा लगता है,आंख सेंकने से आई टानिक मिलता है, पर विश्वास करता है। हृदय डुकर को नींबू और नमक लाने का काम दिया गया।
हम और बल्लू भैया फंस गए,हम लोगन से कहा गया कि आप लोग शहर से कोयला ढूंढ कर लायेंगे। बड़े शहर में कोयले की दुकान खोजना बहुत कठिन काम है, दो किलो कोयला लेने के लिए दुकान खोजने में तीन लीटर पेट्रोल खर्च होता है तीन लीटर पेट्रोल मतलब तीन सौ रुपए से ऊपर। हम लोग कोयले की दुकान ढूंढने निकले तो दो बार कार के चके पंचर हो गये, क्यों न पंचर हों, हमारी स्मार्ट सिटी में गड्ढों में सड़क ढूंढनी पड़ती है। जब दुकान ढूंढते ढूंढते परेशान हो गए तो बल्लू भैया ने कहा अगले मोड़ पर एक भुट्टे बेचने वाले से पूछते हैं कि कोयला कहां मिलेगा, जब मोड़ पर भुट्टे वाले से पूछा तो उसने बताया कि यहां से दस पन्द्रह किलोमीटर दूर एक श्मशान के सामने एक टाल है वहां कोशिश करिए, शायद मिल जाय। हम लोग कोयला ढूंढते ढूंढते थक गए थे तीन लीटर पेट्रोल खतम हो चुका था, उसकी बात सुनकर थोड़ी राहत हुई। पाठक और बसंत डुकरा तेज तर्रार स्वाभाव के थे उनकी डांट से डर लगता था, इसलिए हम दोनों भी डरे हुए थे कि कहीं कोयला नहीं मिला तो क्या होगा,पर अभी अभी भुट्टे बेचने वाले की बात से थोड़ा सुकून मिला। हम दोनों तेज रफ्तार से उस श्मशान के पास वाले टाल को ढूंढने चल पड़े। रास्ते में बल्लू भैया बोले -अरे एक ठो भुट्टा खाना है और इतना नाटक न्यौरा क्यों। एक घंटा बाद हम लोग श्मशान के पास वाले टाल में खड़े थे और कोयले का मोल भाव कर रहे थे, दुकान वाला भुनभुनाया.. कहने लगा -दो किलो कोयला लेना है और दो घंटे से मोलभाव कर रहे हैं, बल्लू हाथ जोड़कर बोला – भैया सठियाने के बाद ऐसेई होता है।
दुकान वाले ने पूछा – इतने दूर से आये हो तो दो किलो कोयले से क्या करोगे ? दुकानदार की बात सुनकर हमने पूरी रामकहानी सुना दी। ईमानदारी से हमारी बात सुनकर दुकानदार को हम लोगों पर दया आ गई बोला – दादा आप लोगों से झूठ बोलने का नईं…. आजकल कोयला कहां मिलता है, हमारे पास जो थोड़ा बहुत कोयले जैसे आता है वह वास्तव में श्मशान से आता है, कुछ बच्चे जिनको दारू की लत लगी है वे जली लाश के आजू बाजू का कोयला बीनकर लाते हैं और सस्ते में यहां बेच जाते हैं और दारू पी लेते हैं। हां कुछ भुट्टे बेचने वाले यहां से ये वाला कोयला आकर खरीद लेते हैं और भुट्टे भूंजकर अपना पेट पालते हैं, क्या करियेगा मंहगाई भी तो गजब की है।आप लोग अपने घर में भुट्टा भूंजकर भुट्टे खाने का आनंद लेना चाहते हैं तो मेरी सलाह है कि ये कोयला मत लो ….
हम दोनों ठगे से खड़े रह गए, समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। बसंत बुड्ढे का फोन आ रहा था कि इतना देर क्यों लगा रहे हो ?
© जय प्रकाश पाण्डेय
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भुट्टे तथा कोयले के बहाने, व्यवस्था तथा मजबूरियों पर करारा व्यंग अरे साहब भुट्टा ही नहीं श्मसान में तो हमने चिंता की आग पर खाना पकाते भी देखा है ।
सच ही तो है जहां न पहुंचे रवि।
वहां पहुंचे कवि। बधाई अभिनंदन अभिवादन साधुवाद उत्कृष्ट सारगर्भित रचना प्रस्तुति के लिए। प्रतिक्रिया——सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी पिन कोड 221208मोबाइल 6387407266
बहुत ही करारा व्यंग, भाई आज के युग की यही सच्चाई है, बधाई हो