श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है लेखक… श्री सुरेश पटवा जी की पुस्तक  “पंचमढ़ी एक खोज” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 113 ☆

☆ “पंचमढ़ी एक खोज” – लेखक – श्री सुरेश पटवा  ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

पंचमढ़ी एक खोज

लेखक.. सुरेश पटवा

वालनट पब्लिकेशन, भुवनेश्वर

पृष्ठ ८४, मूल्य १४९ रु

अमेज़न लिंक (कृपया यहाँ क्लिक करें)  👉 पंचमढ़ी एक खोज

पर्यटन और साहित्य में गहरा नाता होता है. जब लेखक को पर्यटन के माध्यम से सुन्दर दृश्य, मनोरम वातावरण मिलता है तो नये विचार जन्मते हैं, जो उसकी रचनात्मक अभिव्यक्ति में किसी न किसी विधा में कभी न कभी महज यात्रा वृतांत या पर्यटक स्थलो पर केंद्रित साहित्य से इतर भी शब्द बनकर फूटते ही हैं, और कविता, कहानी, साहित्य का नवसृजन करते हैं.

पचमढ़ी मध्य प्रदेश में सतपुड़ा पर्वत श्रंखला का एक मनोहारी रमणीय पर्यटन स्थल है. जब पचमढ़ी पर केंद्रित श्री सुरेश पटवा की पुस्तक “पंचमढ़ी की खोज” नाम से मुझे प्राप्त हुई तो सर्वप्रथम मेरा ध्यान  पचमढ़ी कहे जाने वाले इस स्थल को “पंचमढ़ी” लिखे जाने पर गया और मैं पूरी किताब पढ़ गया. सुरेश पटवा जी पचमढ़ी के निकट सोहागपुर में ही पले बढ़े हैं. स्वाभाविक रूप से जब उन्होनें अध्ययन और लेखन के क्षेत्र में कदम बढ़ाये तो  पचमढ़ी के विषय में उनकी उत्सुकता ने ही उन्हें जेम्स फार्सायथ की अंग्रेजी पुस्तक पढ़कर, पंचमढ़ी की खोज को हिन्दी पाठको हेतु सुलभ करने को प्रेरित किया.

उन्होंने अपने गहन आध्यात्मिक, एतिहासिक  अध्ययन  वैज्ञानिक तर्क वितर्क और, अपने मित्र श्रीकृष्ण श्रीवास्तव के संग कहे, सुने, घूमे पचमढ़ी की जंगल यात्रा के संस्मरणो को अपनी विशिष्ट  सरल भाषा, सहज शैली, और रोचक, रोमांचक, किस्सागोई, तथ्य पूर्ण जानकारियों से भरपूर सामग्री के रूप में यह पुस्तक लिखी है. किताब में जेम्स फार्सायथ, देनवा घाटी की गोद में, पंचमढ़ी का पठार, बायसन लाज की दिक्कतें, नागलोक का सच, पर्यटन  जैसे दस चैप्टर्स में लेखक ने अपनी बात रखी है. लेखक बताते हैं कि आज की सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थली पचमढ़ी की खोज १८६१..६२ में अंग्रेजो ने की थी. तत्कालीन इतिहास और भूगोल को समझाते हुये वे लिखते हैं ” तब भारत १८५७ के भयानक तूफान से गुजरा था, पिपरिया बसा नहीं था, ट्रेन लाईन उसके दस बरस बाद बिछाई गई. ” 

(‘पंचमढ़ी की खोज’  श्री सुरेश पटवा की प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है। आपका जन्म देनवा नदी के किनारे उनके नाना के गाँव ढाना, मटक़ुली में हुआ था। उनका बचपन सतपुड़ा की गोद में बसे सोहागपुर में बीता। प्रकृति से विशेष लगाव के कारण जल, जंगल और ज़मीन से उनका नज़दीकी रिश्ता रहा है। पंचमढ़ी की खोज के प्रयास स्वरूप जो किताबी और वास्तविक अनुभव हुआ उसे आपके साथ बाँटना एक सुखद अनुभूति है। 

श्री सुरेश पटवा, ज़िंदगी की कठिन पाठशाला में दीक्षित हैं। मेहनत मज़दूरी करते हुए पढ़ाई करके सागर विश्वविद्यालय से बी.काम. 1973 परीक्षा में स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं और कुश्ती में विश्व विद्यालय स्तरीय चैम्पीयन रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत सहायक महाप्रबंधक हैं, पठन-पाठन और पर्यटन के शौक़ीन हैं। वर्तमान में वे भोपाल में निवास करते हैं। )

 

श्री सुरेश पटवा के लेखन की विशेषता है कि वे अपने सारे अध्ययन के आधार पर सिलसिले से पाठक से बातें करते सा लेखन करते हैं, वे पौराणिक संदर्भो, इतिहास, भूगोल,वैज्ञानिक विश्लेषण,  साहित्य आदि सारी जानकारियां जुटा कर लिखने बैठते हैं. उप शीर्षकों में छोटे छोटे पैराग्राफ्स में लेखन करते हैं. यह अच्छा भी है किन्तु उन उपशीर्षक सामग्री को किंचित बेहतर तारतम्य में पिरोया जा सकता है.   जैसे उदाहरण स्वरूप “बायसन लाज की दिक्कतें ” चैप्टर में “उन्नीसवीं सदी का आदिवासी जीवन” या “शिवरात्रि मेला ” जैसे उपशीर्षकों का समावेश समीक्षा की दृष्टि से अप्रासंगिक तथा विषय विचलन कहा जा सकता है. किन्तु विषय के ज्ञान पिपासु पाठक हेतु प्रत्येक छोटी बड़ी जानकारी किसी भी क्रम में मिले महत्वपूर्ण ही होती है. मांधाता उपशीर्ष में लेखक आर्य अनार्य, स्कंद पुराण, राजा रघु की चर्चा करते हैं तो वे हजारों वर्षो के इतिहास को समेटते हुये भीलों की भौगोलिक उपस्थिति की बातें भी बताते हैं. 

कुल मिलाकर पचमढ़ी पर जो हिन्दी साहित्य अब तक मिलता है उससे हटकर, एक शोधपूर्ण पठनीय किताब हिन्दी में पढ़ने मिली, जिसमें पर्यटन की जानकारियां भी हैं और पचमढ़ी के आदिकालीन नागलोक, धूपगढ़ के किस्से भी हैं.   हिन्दी जगत को इस कृति के लिये पटवा जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करनी ही चाहिये. उन्होने कविता, गजल, इतिहास, यात्रा वृतांत, बहुविधा लेखन किया है और उनमें हर नई विधा को सीखने समझने की अभिरुचि है, यही कारण है कि वे सतत नये विषयों पर नई नई किताबों के साथ अपनी वजनदार उपस्थिति साहित्य जगत में दर्ज कर रहे हैं. शुभकामना.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments