श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है सुश्री मीना अरोड़ा द्वारा लिखित हास्य व्यंग्य उपन्यास  “पुत्तल का पुष्प वटुक” की समीक्षा।

💐 आज 28 जुलाई को विवेक रंजन के जन्म दिवस पर ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से उन्हें बहुत बहुत बधाई 💐 शुभकामनाएं 💐

साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 115 ☆

☆ “पुत्तल का पुष्प वटुक” – सुश्री मीना अरोड़ा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुत्तल का पुष्प वटुक (हास्य व्यंग्य उपन्यास)

सुश्री मीना अरोड़ा

शब्दाहुति प्रकाशन, नई दिल्ली

पृष्ठ १४४ मूल्य ३९५ रु

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल ४६२०२३

उपन्यास मानव-जीवन के  विभिन्न आयामों के कथा चित्र ही हैं, मानवीय -चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना उपन्यास का मूल तत्व है. कथ्य की सजीवता और स्वाभाविकता उपन्यास के वांछनीय तत्व होते हैं. उपन्यास की सफलता यही होती है कि वह पाठक को उसके परिवेश का बोध करवा सके. पात्रो के संवाद, वर्णन शैली में हास्य तथा व्यंग्य का संपुट कहानी में पाठकीय रोचकता बढ़ा देता है. उपन्यास के लेखन का उद्देश्य स्पष्ट हो तो रचनाकार अपने पाठको व उपन्यास के पात्रों के साथ समुचित न्याय करने में सफल होता है. मीना अरोड़ा एक सुस्थापित व्यंग्य लेखिका हैं. उनकी कवितायें वैचारिक धरातल पर परिपक्व होती हैं. उनकी कविताओ की किताबें “शेल्फ पर पड़ी किताब” तथा ” दुर्योधन एवं अन्य कवितायें ” पूर्व प्रकाशित तथा पुरस्कृत हैं. मीना अरोड़ा की लेखनी का मूल स्वर स्त्री विमर्श कहा जाना चाहिये.

“पुत्तल का पुष्प वटुक ”  एक लम्बी ग्रामीण कहानी है.  भारतीय ग्रामीण परिवेश, गांव के मुखिया के इर्द गिर्द बुनी हुई कथा, जिसमें डाकू भी हैं, देवमुनि का आश्रम भी है. पुत्री की अपेक्षा पुत्र की कामनाएं… लेखिका का गांव के परिवेश का अच्छा अध्ययन है. उपन्यास में पाखण्ड पर प्रहार है, सामाजिक भ्रष्टाचार है, बिगड़ैल मुखिया की दास्तान है,  अंधविश्वास है और विसंगति का व्यापक  अंतर्विरोध भी है. अपने दायरे में मुखिया की माँ का दबदबा है. पुत्तल का पुष्प वटुक एक ग्रामीण परिवेश की कथा समेटे सामाजिक कथ्य की रचना है.

उपन्यास से कुछ व्यंग्य प्रयोग देखिये “रेवती माँ हर साल भगवान बदल बदल कर मन्नतें मांगती ” फरियाद पूरी होते न देख रेवती माँ को मंदिर में रखीं देवी देवताओ की मूर्तियां एक्सपायरी डेट की लगने लगी थीं”

“लोग आँखो देखी से ज्यादा कानों सुनी पर विश्वास करते थे. सयाने बुजुर्गों के पास लोगों के पाप कर्मों का लेखा जोखा, शायद चित्रगुप्त से भी अधिक था… अपने परिजनो से मारपीट, दूसरे की स्त्री ताड़ना, पाप के क्षेत्र में नहीं आता था, यद्यपि रोज मंदिर न जाना, लड़की जनना जैसे कार्य पाप की श्रेणि में थे.”

जब किसी व्यक्ति को उसके पापों का अहसास करवाया जाता तो वह गांव की नदी में सौ डुबकी लगा कर बिना साबुन अपने पाप धो डालता.

हत्या जैसे बड़े पाप हो जाने पर गंगा स्नान के लिये जाना अनिवार्य था. गंगा, गांव से बहुत दूर थी इसलिये लोग उतने ही पाप करते जितना गांव की नदी सह सके.

इसी तरह हास्य के अनेक रोचक प्रसंग भी सहजता से कथा प्रसंगों में प्रचुरता में हैं. मुखिया का बड़ा बेटा इंजीनियरिंग कर शहर में एक फ्लैट लेता है तब का प्रसंग देखें “… तीन कमरों पर पाँच कमरे भी बनाये जा सकते हैं, बस मकान को भूतल से ऊँचा उठाने के बाद आसपास हवा में उपलब्ध क्षेत्र को कब्जाना होता है, इसे अतिक्रमण नही एक्सटेंशन कहा जाता है….. वैसे यह कला मनुष्य से ही सीखी गई होगी, जैसे दो टांगो पर खड़ा आदमी अपना बड़ा सा पेट लेकर ज्यादा स्थान घेर लेता है.

नारी विमर्श की प्रतिनिधि पात्र पप्पू की दो चचेरी  बहनें संजना और रंजना हैं, वे ही एक बाहरी मजदूर द्वारा गांव की एक लड़की मालती के साथ किये गये अत्याचार के विरुद्ध निकम्में पप्पू को  गीता के  श्लोक “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मनम् सृजाञ्यहम्”  की व्याख्या कर जगाती हैं.   इससे अनुप्राणित नाकारा पप्पू गांव से भाग गये अपराधी बकलू को बांधकर गांव में घसीट लाता है और चिल्लाता है “मांस तो इस नीच का कटेगा…. कोई हीरा चाचा कमला चाची और मालती को गाँव से बाहर जाने नही कहेगा “…  अस्तु सहज सरल भाषा वाद संवाद में व्यंग्य और हास्य, कहानी के ट्विस्ट उपन्यास की रोचकता बरकरार रखने में कामयाब हुये हैं. पठनीय पुस्तक है. हिंदी में व्यंग्य हास्य के उपन्यास बहुत ज्यादा नहीं हैं, महिला लेखिकाओ के तो नगण्य. मेरी शुभेच्छा  मीना जी के साथ हैं.

शब्दाहुति प्रकाशन ने आजादी की वर्षगांठ को मनाने इस उपन्यास को मनिकर्णिका सिरीज के अंतर्गत, त्रुटि रहित मुद्रण, अच्छे कागज पर, उम्दा तरीके से प्रकाशित कर किया, वे भी बधाई के सुपात्र हैं.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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