श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – भरोसा उठ गया है।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 174 ☆
कविता – भरोसा उठ गया है
है कपास
या है बिन पानी का टुकड़ा बादल का
टंका हुआ आसमान पर
सहेजे हुए सुई ।
सेल्फ एडिटिंग के इस जमाने में
विश्वसनीयता की खोज
रूई के ढेर में सुई की खोज सी बेमानी है ।
बिन धागे सुई का कोई काम नहीं
कतली बिना रूई बेमानी है
नोंक बिना सुई और
बदरी बिन पानी, बेमानी है
फरेबी है दुनियां , इंतिहा है
इंसा सरा सर बेपानी है ।
सफेदी झकाझक
आकर्षक है
और
स्याह आसमान
गुमनामी है।
भरोसा उठ गया है
गीत गजल कविता से
शब्द भरोसा न दे सके जो
तो हैं निरर्थक , बेनामी है
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈