श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 213 सार्थक ?

जीवन मानो एक दौड़ है। जिस किसी से पूछो, कहता है; वह दौड़ना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है। फिर बताता है कि अब तक जीवन में कितना आगे बढ़ चुका है। अलबत्ता कभी विचार किया कि आगे यानी किस ओर बढ़ रहे हैं? मनुष्य प्रतिप्रश्न दागता है कि यह कैसा निरर्थक विचार है? स्वाभाविक है कि जीवन की ओर बढ़ रहे हैं। सच तो यह है कि प्रश्न तो सार्थक ही था पर मनुष्य का उत्तर नादानी भरा है। जीवन की ओर नहीं बल्कि मनुष्य मृत्यु की ओर बढ़ रहा होता है।

भयभीत या अशांत होने के बजाय शांत भाव से तार्किक विचार अवश्य करना चाहिए। मनुष्य चाहे न चाहे, कदम बढ़ाए, न बढ़ाए, पहुँचेगा तो मृत्यु के पास ही। मनुष्य के वश में यदि पीछे लौटना होता तो वह बार-बार लौटता, अनेक बार लौटता, मृत्यु तक जाता ही नहीं, फिर लौट आता, चिरंजीवी होने का प्रयास करता रहता।

स्मरण रखना, मृत्यु का कोई एक गंतव्य नहीं है,  बल्कि यात्रा का हर चरण मृत्यु का स्थान हो सकता है, मृत्यु का अधिष्ठान हो सकता है। विधाता जानता है मनुष्य की वृत्ति, यही कारण है कि कितना ही कर ले जीव, पीछे लौट ही नहीं सकता। जिज्ञासा पूछती है कि लौट नहीं सकते तो विकल्प क्या है? विकल्प है, यात्रा को सार्थक करना।

सार्थक जीने का कोई समय विशेष नहीं होता। मनुष्य जब अपने अस्तित्व के प्रति चैतन्य होता है, फिर वह अवस्था का कोई भी पड़ाव हो, उसी समय से जीवन सार्थक होने लगता है।

एक बात और, यदि जीवन में कभी भी, किसी भी पड़ाव पर मृत्यु आ सकती है तो किसी भी पड़ाव पर जीवन आरंभ क्यों नहीं हो सकता? इसीलिए कहा है,

कदम उठे,

यात्रा बनी,

साँसें खर्च हुईं

अनुभव संचित हुआ,

कुछ दिया, कुछ पाया

अर्द्धचक्र पूर्ण हुआ,

भूमिकाएँ बदलीं-

शेष साँसों को

पाथेय कर सको

तो संचय सार्थक है

अन्यथा

श्वासोच्छवास व्यर्थ है..!

ध्यान रहे, जीवन में वर्ष तो हरेक जोड़ता है पर वर्षों में जीवन बिरला ही फूँकता है। आपका बिरलापन प्रस्फुटन के लिए प्रतीक्षारत है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज  दि. 15 अक्टूबर 2023 से नवरात्रि साधना आरंभ होगी। इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

🕉️ 💥 देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे। सदा की भाँति आत्म-परिष्कार तथा ध्यानसाधना तो चलेंगी ही। मंगल भव। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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