हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 28 ☆ मुक्तक ।।जनचेतना जीवन की पहली पुकार हो जाये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका बाल साहित्य में एक भावप्रवण मुक्तक ।।जनचेतना जीवन की पहली पुकार हो जाये।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 28 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।जनचेतना जीवन की पहली पुकार हो जाये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

मानवता की जीत दानवता  की  हार  हो  जाये।

प्रेम  से   दूर   अपनी   हर  तकरार   हो  जाये।।

महोब्बत    हर    जंग   पर    होती    भारी    है।

यह दुनिया बस इतनी सी समझदार हो जाये।।

[12]

संवेदना बस हर किसी का सरोकार हो जाये।

हर   कोई   प्रेम   का  खरीददार   हो   जाये।।

नफ़रतों  का   मिट   जाये   हर   गर्दो  गुबार।

धरती पर ही स्वर्ग सा यह संसार  हो  जाये।।

[3]

काम हर  किसी  का  परोपकार  हो   जाये।

हर  मदद  को  आदमी  दिलदार हो जाये।।

जुड़ जाये  हर दिल से हर दिल का ही तार।

तूफान खुद  नाव  की  पतवार  हो  जाये।।

[4]

अहम   हर  जिंदगी   में  बस   बेजार  हो  जाये।

धार    भी    हर  गुस्से   की   बेकार   हो  जाये।।

खुशी  खुशी  बाँटे  आदमी  हर  इक खुशी को।

गले से गले लगने को आदमी बेकरार हो जाये।।

[5]

हर   जीवन   से   दूर   हर   विवाद    हो    जाये।

बात घृणा की जीवन में कोई अपवाद हो जाये।।

राष्ट्र   की   स्वाधीनता   हो  प्रथम  ध्येय  हमारा।

देश   हमारा  यूँ   खुशहाल   आबाद  हो   जाये।।

[6]

वतन  की  आन  ही हमारा  किरदार   हो   जाये।

दुश्मन के लिए  जैसे हर बाजू ललकार हो जाये।।

राष्ट्र    की    गरिमा   और   सुरक्षा  हो  सर्वोपरि।

बस इस जनचेतना  का  सबमें संचार हो  जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈