श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता – “मन की बात”।)
☆ कविता # 149 ☆ “मन की बात” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
पहाड़ काले पत्थरों का ढेर,
और निर्दयी खूसट नहीं होता,
सतही तौर पर वह,
इतना सहज नहीं होता,
धरती के दुख से,
वह भीतर भीतर पिघलता रहता है,
उसकी असंख्य आंखों से,
तरल नीर बहकर समुद्र से मिलता है,
उसकी अंतरात्मा को,
समझ पाना उतना ही मुश्किल है,
जितना संवेदनशील होकर,
अपने मन को पहाड़ बना लेना,
© जय प्रकाश पाण्डेय
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भाई, सुंदर रचना, बधाई