हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 117 – “अस्तित्व की यात्रा (लघुकथा संग्रह)” – श्रीमती कान्ता राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्रीमती कान्ता राय जी के लघुकथा संग्रह “अस्तित्व की यात्रा” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 117 ☆

☆ “अस्तित्व की यात्रा (लघुकथा संग्रह)” – श्रीमती कान्ता राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक – अस्तित्व की यात्रा (लघुकथा संग्रह)   

लेखिका – कान्ता राय

पृष्ठ १६८, मूल्य ३६०, संस्करण २०२१

प्रकाशक… अपना प्रकाशन, भोपाल

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

श्रीमती कान्ता राय

हाल ही राही रेंकिंग के इस वर्ष घोषित रचनाकारों में इस कृति की लेखिका कान्ता राय का नाम भी शामिल है, यह उल्लेख इसलिये कि लघुकथा के क्षेत्र में स्वयं के लेखन तथा लघुकथा शोध केंद्र के माध्यम से लघुकथा वृत्त के नियमित प्रकाशन, लघुकथा केंद्रित वेबीनारों के संयोजन आदि के जरिये लंबे समय से लेखिका लघुकथा पर एक टीम वर्क कर रही हैं, जिसे साहित्य जगत स्वीकार रहा है. मूलतः कान्ता राय एक अहिन्दी भाषी, हिन्दी रचनाकार हैं. उन्हें समर्पित भाव से भोपाल के विभिन्न साहित्यिक आयोजनो में सक्रिय भूमिका निभाते देखा जा सकता है. मैंने उनकी पुस्तक अस्तित्व की यात्रा लघुकथा संग्रह की छोटी छोटी किन्तु बड़े संदेशे देती कहानियां पढ़ीं. कविता के बाद लघुकथा ही वह विधा है जिसमें न्यूनतम वाक्यों में अधिकतम कथ्य व्यक्त किया जा सकता है. इस तरह यह ‘गागर में सागर’ भर देने की कला है. अस्तित्व की यात्रा की लघुकथाओ से गुजरते हुये मैंने पाया कि कान्ता राय ने अपनी कहानियों से जो शब्द चित्र रचे हैं वे यथावत पाठक के मानस पटल पर पुनर्चित्रित होते हैं. पाठक रचना का संदेश ग्रहण करता है एवं कथा बिम्ब से ध्वनित होती व्यंजना से प्रभावित होता है . उनकी लघुकथाओ में भाषाई मितव्ययता है. तीक्ष्णता है, अभिधा में संक्षिप्त वर्णन है तो  लक्षणा और व्यंजना शक्ति का उपयुक्त प्रयोग मिलता है.

प्रभावोत्पादकता में लघुकथा का शीर्षक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान करता है, कान्ता राय की लघुकथाओ के कुछ शीर्षक इस तरह हैं.. लाचार आँखें, आबदाना, कागज का गांव, मेरे हिस्से का चाँद, डोनर चाहिये, अस्तित्व की यात्रा, मेड इन इंडिया, ९वर टेक, खटर पटर… इस तरह वे शीर्षक सेही पाठक को आकर्षित करती हैं और कौतुहल जगा कर उसे लघुकथा पढ़ने के लिये प्रेरित करती हैं. लघुकथा के विन्यास में विसंगति पर “सौ सुनार की एक लुहार की” वाला ठोस प्रहार देखने को मिलता है. कथ्य घटना का नाटकीय और रोचक वर्णन तभी किया जा सकता है, जब रचनाकार में अभिव्यक्ति का कौशल एवं भाषा पर पकड़ हो, यह गुण लेखिका की कलम में मुखरित मिलता है. शब्द विन्यास और आकार में कान्ता राय की लघुकथायें आकार की सीमाओ का निर्वाह करती हैं. संभवतः “व्रती” शीर्षक से लघुकथा संग्रह की सबसे छोटी रचना है… ” सालों गुजर गये, मोहित विदेश से वापस नहीं लौटे. प्रतिदिन आने वाला फोन धीरे धीरे महीनों के अंतराल में बदल गया. पतिव्रता अपना धर्म निर्वाह कर रही थी कि आज अशोक आफिस में दोस्ती से जरा आगे बढ़ गये, उसने भी इंकार नहीं किया और व्रत टूट गया “.

इस छोटी से कथा में लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप की वर्तमान सामाजिक समस्या, स्त्री पुरुष संबंधो का मनोविज्ञान बहुत कुछ संप्रेषित करने में वे सफल हुई हैं.

पुस्तक की शीर्षक लघुकथा अस्तित्व की यात्रा है. इस लघुकथा का कला पक्ष कितना प्रबल है यह देखिये  “… वह ठिठकी.. आँखो में कठोरता उतर आई, वह प्रसवित जीव को लेकर स्वयं शिकार करने शेरनी बनकर निकल पड़ी, वह अब स्त्री नहीं कहलाना चाहती थी. “

संक्षेप में अपने पाठको से यही कहना चाहता हूं कि किताब पैसा वसूल है, अब तक लघुकथा के एकल संग्रह कम ही हैं, यह महत्वपूर्ण संग्रह पठनीय है और लघुकथा साहित्य में एक मुकाम बनायेगा यह विश्वास देता है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈