डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘पुत्र का मान’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 98 ☆

☆ लघुकथा – पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

तुमने अपने भाई को फोन किया ? पिता ने बड़ी बेसब्री से बेटी से दिन में तीसरी बार पूछा।

नहीं, हम करेंगे भी नहीं। वह जब आता है गाली-गलौज करता है। आप दोनों को भी कितनी गालियां सुनाता था। दो समय का खाना भी बिना ताना मारे नहीं देता था आपको।हम यह सब सहन नहीं कर पा रहे थे इसलिए आप दोनों को अपने घर ले आए।

वह तो ठीक है बेटी! पर माँ का अंतिम समय है – पिता ने दुखी स्वर में कहा, उसे तो बताना ही पड़ेगा। क्या पता कब प्राण निकल जाए।

तब देखा जाएगा। जब हम अपनी ससुराल में रखकर आप दोनों की देखभाल कर सकते हैं तो आगे भी सब निभा सकते हैं। आप उसकी चिंता मत करिए।

पिता ने सोचा बेटी के घर में माँ चल बसीं तो बेटा समाज को क्या मुँह दिखाएगा। मौका पाकर बेटे को फोन कर बता दिया। बेटा – बहू घड़ियाली आँसू बहाते आए और बोले क्या हाल कर दिया मेरी माँ का। जी – जान से वर्षों माता- पिता की सेवा करनेवाली बहन पर माँ की ठीक से देखभाल ना करने के आरोप लगाए।

‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष के साथ माँ की अंतिम यात्रा बेटे के घर से निकल रही थी। अर्थी को कंधा देकर बेटे ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था और पिता ने पुत्र का मान बचाकर।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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