डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके याद के संदर्भ में दोहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 102 – याद के संदर्भ में दोहे…
याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास।
अपना तो यह हाल है, यादें बने लिबास।।
फूल तुम्हारी याद के, जीवन का एहसास।
वरना है यह जिंदगी, जंगल का रहवास।।
यादों की कंदील ने ,इतना दिया उजास।
भूलों के भूगोल ने, बांच लिया इतिहास ।।
बादल आकर ले गए ,उजली उजली धूप ।
अंधियारे में कौंधते, यादों वाले स्तूप।।
सांसो की सरगम बजे, किया किसी ने याद।
शब्दों का है मौन व्रत, कौन करे संवाद ।।
यादों के आकाश में,फूले खूब बबूल ।
सांसों की सर फूंद भी, अधर रही है झूल ।।
सांसों का संकीर्तन, मिलन क्षणों की याद।
मन – ही – मन से कर रहा, एकाकी संवाद।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
डॉ सुमित्र की कविता अच्छी लगी l