श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे किले पर खड़ा तिरंगा….”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 47 – मनोज के दोहे …. ☆
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम-पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे -केश।
पावों में अलता लगा, चली सजन के देश।।
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे, ऋतु बसंत की धूप।।
कंपन करते ओष्ठ हैं, पिया-सेज-शृंगार ।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
अलि के कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ रहा, भाई का संदेश।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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