श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक मज़ेदार व्यंग्य श्रंखला  “प्रशिक्षण कार्यक्रम…“ की अगली कड़ी ।)   

☆ व्यंग्य  # 45 – प्रशिक्षण कार्यक्रम – भाग – 5 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

चमत्कारी प्रशिक्षु: किस्सा इंदौर प्रशिक्षण केंद्र का है. वाकया उस वक्त का जब हर सत्र के दौरान विषय से संबंधित “हेंड आउट्स” सभी पार्टिसिपेंट्स को वितरित किये जाते थे. यह चमत्कारी युवा बड़ी शिद्दत से एक-एक हेंड ऑउट से अपना फोल्डर सजाता था. मजाल है कि एक भी कम हो जाये. पर फिर भी अविश्वास इतना कि कांउटिंग रोज होती थी. आज तक कितने हो गये. कभी कोई मजा़क में कह दे कि अरे तुम्हारे पास एक कम कैसे है, कौन सा पेपर नहीं है. फिर भारी टेंशन कि कौन सा वाला मिस कर दिया. किसी सहयोग करने वाले बंदे की शरण ली जाती, फुरसत में एक एक हैंड ऑउट, करेंसी की तरह टैली किये फिर पता चलता कि ये तो प्रैंक था.

उस जमाने में इंदौर कपडों के लिये भी प्रसिद्ध था तो रविवार उपलब्ध होने पर कपड़े भी खरीदे जाते. चमत्कारी युवक ने भी कपड़े खरीदे और कुछ ज्यादा ही खरीद लिये, लेटेस्ट फैशन और किफायती होने के कारण. अंतिम दिन जब पैकिंग की बारी आई तो ट्रेनिंग नोट्स के कारण फोल्डर भी भारी हो गया था. सूटकेस के बगावती तेवर सिर्फ एक ही ऑप्शन प्रदान कर रहे थे या तो तंदुरुस्त फोल्डर जगह पायेगा या नये कपड़े. और कोई दूसरा रास्ता था नहीं. वापसी की ट्रेन या बस जो भी रही हो, पकड़ने के लिये समय बहुत कम बचा था. निर्णय जल्दबाजी में, कुशल ज्ञानी सहपाठियों के सिद्धांत के आधार पर लिया गया. कपड़े छोड़े नहीं जा सकते क्योंकि मनपसंद और कीमती हैं. ज्ञान तो व्यवहारिक है, गिरते पड़ते सीख ही जायेंगें. फिर भी मन नहीं माना तो मेस के ही एक सेवक के पास अमानत के तौर पर रखवा दिये कि बहुत जल्दी फिर प्रशिक्षण पर आना ही है, इतनी जल्दी हम न सीखते हैं न ही सुधरते हैं. सेवक भी, प्रशिक्षण केंद्र में काम-काम करते-करते कोर्स से इतर विषयों में प्रशिक्षित हो गया था तो उसने हल्की मुस्कान से इन साहब के आदेश का पालन किया और अमानत में खयानत की भावना के साथ फोल्डर को अपना संरक्षण प्रदान किया.

वैसे जो फोल्डर लेकर जाते हैं, वे भी कितना पढ़ पाते हैं ये शोध का विषय हो सकता है या फिर confession का. 😀

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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