श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक एक विचारणीय एवं समसामयिक ही नहीं कालजयी रचना “भाषा सम्मेलन”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 115 ☆
☆ भाषा सम्मेलन ☆
सभी भाषाओं का सम्मेलन हो रहा था अंग्रेजी बड़े गर्व के साथ उठी और कहने लगी मैं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हूँ, मुझे जितना सम्मान भारत में मिला उतना कहीं नहीं, धन्यवाद भारतीयों।
फ्रेंच, रूस, जापानी, चीनी सभी भाषाएँ एक एक कर मंच पर अपनी प्रस्तुति देतीं गयीं व सभी ने हिंदी की प्रशंसा व्यंग्यात्मक लहजे में मुक्त कंठ से की।
सबसे अंत में हिंदी को मौका मिला, तो उसने कहा आप सब का धन्यवाद मैंने तो सदैव सबको समाहित किया है क्योंकि भारतीय संस्कार हैं जो वसुधैव कुटुम्बकम का पालन कर रहे हैं , जो समष्टि का पोषक करता है वही दीर्घजीवी व यशस्वी होगा ऐसा दार्शनिक व वैज्ञानिक दोनों ही आधार पर सिद्ध हो चुका है।
ये सब कहीं न कहीं सत्य है। हिंदी पखवाड़े में हिंदी पर हिंदी भाषी ही चिंतन करते हैं और बाद में निराश होकर टूट जाते हैं और हिंदी के लेखन व ऑफीसियल कार्यों में इसके प्रयोग को नियमित नहीं कर पाते। दरसल हिंदी के कठिन शब्दों को ही अंग्रेजी के विकल्प के रुप में रखा जाता है। क्या आपने कभी गौर किया कि हमेशा हिंदी प्रयोग करने वाला भी बैंक या अन्य ऑफिस के कार्यों में अंग्रेजी का ही विकल्प चुनता है क्योंकि उसमें बोलचाल के शब्द होते हैं जबकि उत्कृष्ट हिंदी पढ़कर वो सहसा भूल जाता है कि क्या लिखा है।
हमें सामान्य बोलचाल की भाषा व ऐसे शब्द हो हिंदी ने आत्मसात कर लिए हैं उनका ही प्रयोग करना चाहिए। पूरे राष्ट्र को एक भाषा सूत्र में पिरोने हेतु बोलियों के प्रचलित शब्दों को भी बढ़ावा देना होगा। सरलता व सहजता से ही अहिंदी प्रान्तों को हिंदी प्रेमी बनाना होगा। पूरे वर्ष भर हिंदी के प्रयोग को एक आंदोलन के रूप में चलाना चाहिए। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने सही कहा है – निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल। आइए संकल्प लें कि हिंदी में बोलेंगे, लिखेंगे और अन्यों को भी प्रेरित करेंगे।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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