डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके गीत – हो हृदय के पास…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 106 – गीत – हो हृदय के पास✍

शपथ है उन सात फेरों की

है शपथ संझा-सबेरों की

है साक्षी आकाश,

मत तोड़ना विश्वास।

हो हृदय के पास।

*

याद है वह दिन तुम्हें

जाँचे बिना ही व्याह लाया था

अब कहूँ क्या और ज्यादा,

मैं समंदर थाह लाया था।

*

रतन से ज्यादा तुम्हें पाया,

जिंदगी को गीत – सा गाया

मत तोड़ना विश्वास

साक्षी आकाश

हो हृदय के पास ।

*

देवता की बात छोड़ो

आदमी से भूल होती है

निर्मली आकाश के भी पाश में

कुछ धूल होती है

धूल को तुमने हटाया है

रंग मेरा निखर आया है

मत तोड़ना विश्वास

साक्षी आकाश

हो हृदय के पास ।

*

कवि हृदय को बाँचना भी एक मुश्किल काम होता है

आँख उसकी भिखारिन इसलिए बदनाम होता है।

जो सजाई फूल क्यारी है, सम्मिलित खुशबू हमारी है

मत तोड़ना विश्वास

साक्षी आकाश

मैं हृदय के पास

हो हृदय के पास।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन मार्मिक अभिव्यक्ति