श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय लघुकथा “हिंदी और बदलती सोच…”।)
☆ तन्मय साहित्य # 150 ☆
☆राजभाषा मास विशेष – लघुकथा – हिंदी और बदलती सोच… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
लघुकथा
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घर पर आए मेहमान का स्वागत करते हुए अपने दस वर्षीय पोते विनोद को विद्यासागरजी ने उन्हें प्रणाम करने का संकेत किया।
“नमस्ते अंकल जी” कहते हुए विनोद ने मेहमान के घुटनों को एक हाथ से छूते हुए प्रणाम करने की रश्म निभाई।
“कौन सी कक्षा में पढ़ते हो बेटे?”
“क्लास सिक्स्थ में “
“कौन सी स्कूल में”
“अंकल, डी पी एस- देहली पब्लिक स्कूल”
“अरे वाह! वहाँ तो पूरे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है ना?”
“हाँ भाई सा.! ए – टू जेड इंग्लिश मीडियम में, बीच में ही विद्यासागर जी सगर्व भाव से बोल पड़े। और तो और वहाँ आपस में भी हिंदी में बात करना एलोड नहीं है, साथ में बहुत सारी अदर एक्टिविटीज भी सिखाते हैं।”
“सिखाने की बात से याद आया, भाई जी, अब तो ये छुटकू इंग्लिश शब्दों में मेरी भी गलतियाँ निकालने लगा है, कल ही मार्केट जाते समय मैंने कहा कि बेटू – ट्राफिक बहुत बढ़ गया है आजकल।”
तो कहने लगा “दादूजी आप गलत बोल रहे हो, ट्राफिक नहीं ट्रैफिक या ट्रॉफिक बोलते हैं।”
यह बताते हुए विद्यासागर जी का चेहरा पुनः गर्व से दीप्त हो उठा।
“ये तो बहुत अच्छी बात है। अच्छा विद्यासागर जी, वहाँ हिंदी भी तो एक विषय होगा ना?”
“अब क्या बताएँ भाई जी, है तो हिंदी विषय सिलेबस में, पर कहाँ पढ़ पाते हैं ये आज के बच्चे, अब इसे ही देखो हिंदी वर्णमाला और हिंदी की गिनती भी ठीक से नहीं आती जब कि इंग्लिश में फर्राटे से सब कुछ बता देगा ये, फिर एक विजयी मुस्कान तैर गयी चेहरे पर।”
“तो आप क्यों नहीं पढ़ाते इन्हें घर पर हिंदी ?”
“आप भी तो जानते हैं अब आज के समय में कहाँ बखत रह गयी हिंदी की भाई जी!”
“इसलिए समय के साथ जो चल रहा है वही ठीक है।”
ज्ञातव्य हो कि कईं सम्मान-अलंकरणों से सम्मानित विद्यासागर जी हिंदी के एक सुविख्यात वरिष्ठ साहित्यकार है।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈