हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे….  

1 कृतार्थ

मन कृतार्थ तब हो गया, मिला मित्र संदेश।

याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।

2 कलकंठी

कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।

वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मन मोर।।

3 कुंदन

दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।

यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।

4 गुंजार

चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।

कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्य प्रदेश।।

5 घनमाला

घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।

बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

24-9-2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈