श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण गजल ।।आँखें।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 39 ☆

☆ गजल ☆ ।। आँखें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

खुशी गम हर बात का ऐलान  हैं आंखें।

दिल का दिखाती पूरा जहान  हैं आंखें।।

[2]

मन की हालत दिल की   सूरत  छिपी हुई।

हमारे जज्बातों का जमींआसमान हैं आंखें।।

[3]

कभी हंसती बोलती  बताती बहुत कुछ।

कभी कभी हैरत से बहुत हैरान हैं आंखें।।

[4]

कभी नरम गरम तो कभी आंसू मुस्कान।

बन जाती शोला शबनम तूफान हैं आंखें।।

[5]

आंखों में भरी होती इबादत   शरारत भी।

मानो कि कोई बोलती सी जुबान हैं आंखें।।

[6]

दिखाती बताती जैसे हर बात आदमी की।

आदमी की शख्सियत का निशान हैं आंखें।।

[7]

हंस ऊपरवाले ने बख्शी ह मको दो आंखें।

सच कहें तो यह आईने- इंसान हैं आंखें।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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