श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “पढ़े चलो बढ़े चलो। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 124  ☆

☆ पढ़े चलो बढ़े चलो ☆ 

त्याग,तपस्या, उपवास से दृढ़ निश्चय की भावना बलवती होती है। इसे कार्यसिद्धि का पहला कदम माना जा सकता है। लगातार एक दिशा में कार्य करने वाला कमजोर बुद्धि का होने पर भी सफलता हासिल कर लेता है। अक्सर देखने में आता है कि लोग अपनी विरासत को सम्हालने के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं और जैसे परिस्थितियाँ बदलीं बस झट से खुद को मुखिया साबित कर पूरी बागडोर अपने हाथ में ले लेते हैं। राजनीतिक क्षेत्रों में ऐसा प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। कोई इसे परिवार वाद का नाम देता है तो कोई इसे अपना अधिकार मानकर खुद झपट लेता है। सियासी दाँव- पेंच के बीच छुट भैया नेताओं को भी गाहे- बगाहे मौका मिल जाता है। पिता की चुनावी सीट को अपनी बपौती मानकर टिकट लेना और न मिलने पर अलग से पार्टी बना लेने का चलन खूब तेजी से बढ़ रहा है।

जैसे-जैसे लोग शिक्षित हो रहे हैं वैसे- वैसे उनके चयन का आधार भी बदल रहा है। वे भावनाओं के वशीभूत होकर उम्मीदवार का चयन नहीं करते हैं। चुनावी घोषणा पत्र से प्रभावित होकर पाँच वर्षों के लिए नए प्रत्याशी को मौका देने लगें हैं।

कथनी और करनी में भेद सदैव से जनतंत्र का अघोषित मंत्र रहा है। कोई इसी चुनावी जुमला कह के पल्ला झाड़ लेता है तो कोई केंद्र सरकार पर दोषारोपण करते हुए सहायता न मिलने की बात कह देता है। कुल मिलाकर लोग जहाँ के तहाँ रह जाते हैं। अब तो लोगों को भी मालूम है कि ये सब प्रलोभन बस कुछ दिनों के हैं किंतु चयन तो करना है सो मतदान को अपना अधिकार मानते हुए मत दे देते हैं।

इन सबके बीच एक बात अच्छी है कि सभी दल सारे मतभेदों से ऊपर अपने राष्ट्र को रखते हुए तिरंगे का सम्मान करते हैं और आपदा पड़ने पर एकजुटता का परिचय देते हैं। शिक्षा के महत्व को जीवन के हर क्षेत्रों में देखा जा सकता है। आइए मिलकर एक दूसरे का सहयोग करते हुए शत प्रतिशत साक्षरता की ओर अग्रसर हों।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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