श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#मैंने अपनी कलम तोड़ दिया है…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 105 ☆

☆ # मैंने अपनी कलम तोड़ दिया है… # ☆ 

जब मैंने कलम उठाई

तो सोचा

बस सच ही लिखूंगा

चारण और भाटों सा नहीं बिकूंगा

कुछ अलग होगी छवि मेरी

सिद्धांतों से कभी नहीं डिगूंगा

 

मेरे शब्द जब उनको चुभने लगे

अपने अहंकार में जब वो डूबने लगे

खतरे में पड़ा जब उनका अस्तित्व

वो हर गली चौराहे पर मुझे ढूंढने लगे

 

मेरे कलम का बहिष्कार कर दिया

मेरे खिलाफ दिलों में नफ़रत भर दिया

जो उसे पढ़ेगा वो विद्रोही कहलायेगा

मुझे कवि मानने से ही इनकार कर दिया

 

मेरे साथ आज कोई खड़ा नहीं है

मेरे हक के लिए कोई लड़ा नहीं है

गुमनाम सा जी रहा हूं अपने ही शहर में

मेरा वजूद जिंदा है, अभी मरा नहीं है

 

ऐसे समाज में मैं लिख के क्या करूं?

किसके लिए जीऊँ, किसके लिए मरूं

पत्थर से हो गये हैं जीते जी यहां

किस किसके सीने में जान फूंकता फिरूँ

 

आज मैंने अपनी कलम तोड़ दिया है

आज से मैंने लिखना छोड़ दिया है

अंधों, गूँगों, बहरों की नगरी में

पत्थरों पर सर फोड़ना छोड़ दिया है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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