डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत –क्षण को क्यों बचा लिया।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 115 – गीत – क्षण को क्यों बचा लिया
अर्पित अगर किया है जीवन
तो क्षण को क्यों बचा लिया।
क्षण का ही विस्तार समय है
प्रेम नहीं कुछ केवल लय हैं
विलय अगर कर दिया स्वयं का
तो मन को क्यों बचा लिया?
मन का मधुबन ही तो सच है
तन का क्या वह मात्र कवच है
सौंप दिया है मन मधुबन
तो तन को ही क्यों बचा लिया।
अर्पित अगर किया है जीवन
क्षण को क्यों बचा लिया।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति