श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “मन दर्पण में…”। )
☆ तन्मय साहित्य #159 ☆
☆ मन दर्पण में…☆
फूल, शूल, तरु-लता, पर्ण
इस मन के उपवन में
प्रिय-अप्रिय पल पाल रखे
कितने अंतर्मन में।
बन्द करी आँखें तो,
रंगबिरंगे स्वप्न दिखे
तब अन्तस् अवचेतन ने
कुछ मधुरिम छंद लिखे,
उलझे रहे स्वकल्पित
गन्धों के अपनेपन में।
प्रिय-अप्रिय पल —-
हुआ उजाला दिन भर
हम सूरज के साथ चले
किया हिसाब सांझ को
तो, घाटे में हाथ मले,
देख चांदनी बहके फिर
बिलमाये नर्तन में।
प्रिय-अप्रिय पल —-
कभी विषैली हवा हमें
कुंठित कर जाती है
कभी जिंदगी सुरभित
फूलों सी मुस्काती है,
पल-पल बदले चित्र-विचित्र
दिखे मन दर्पण में।
प्रिय-अप्रिय पल —-
वही वही, फिर-फिर
जीवन भर करना पड़ता है
वह मेरा अबूझ जो है,
सब कैसे सहता है,
आतुर भी आनंदित भी
अभिनव परिवर्तन में।
प्रिय अप्रिय पल पाल रखे
कितने अंतर्मन में।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈