श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 65 – मनोज के दोहे ☆

1 शीत

शीत लहर से काँपता, तन मन पात समान।

ओढ़ रजाई बावले, क्यों बनता नादान।।

2 शरद

शरद सुहानी छा गई, करती हर्ष विभोर।

रंगबिरंगी तितलियाँ, भ्रमर मचाते शोर।।

3 माघ

माघ-पूस की रात में, सड़कें सब सुनसान।

शीत हवा बहती विकट, काँपें सबके प्रान।।

4 पूस

कहा माघ ने पूस से, तेरी क्या औकात।

अभी तुझे बतला रहा, दूँगा निश्चित मात।।

5 कुहासा

बढ़ा कुहासा ओस का, गाड़ी चलतीं लेट।

प्लेट फार्म में बैठकर, प्रिय कब होगी भेंट।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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