श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता – “मौसम औरअंगड़ाई”।)
☆ कविता # 171 ☆ “मौसम औरअंगड़ाई” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
आज
जैसे चिड़िया
उड़ी है फुर्र से,
वैसे फुर्र से
उड़ गई है ठंड,
आज
जैसे पाहुना
आता है बिन बताए
वैसे ही सूरज
लेकर आया तेज धूप ,
आज
जैसे बच्चा
खुश होता है
आइसक्रीम पाकर
वैसे ही नीम
के पत्ते खिलखिलाए,
आज
जैसे भूख पेट से
लिपट पड़ती है
वैसे ही लिपट रही है
गेहूं की बाली,
आज
जब दिन बढ़ने
लगे हैं बित्ते बित्ते
तो सियासी समर
के दिन बचे
हैं कित्ते,
© जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈