श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपके भावप्रवण “तन्मय के दोहे – गुमसुम से हैं गाँव…”। )
☆ तन्मय साहित्य #166 ☆
☆ तन्मय के दोहे – गुमसुम से हैं गाँव… ☆
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पथरीली पगडंडियाँ, उस पर नंगे पाँव।
चिंताओं के बोझ से, गुमसुम-सा है गाँव।।
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बारिश में कीचड़ लगे, गर्मी जले अलाव।
ठंडी ठिठुराती यहाँ, डगमग जीवन नाव।।
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नव विकास की आँधियाँ, उड़ा ले गई गाँव।
लगा केकटस आँगने, अब तुलसी के ठाँव।।
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गाँव ताकता शहर को, शहर गाँव की ओर
अपनी-अपनी सोच है, किस पर किसका जोर।।
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पेड़ सभी कटने लगे, जो थे चौकीदार।
कौन नियंत्रित अब करे, मौसम के व्यवहार।।
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कलप रही है कल्पना, कुढ़ता रहा समाज।
साहूकार की डायरी, चढ़ा ब्याज पर ब्याज।।
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ऊब गई है जिंदगी, गिने माह दिन साल।
रीता मन कृशकाय तन, ढूँढे पंछी डाल।।
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अब प्रभात फेरी नहीं, गुम सिंदूरी प्रात
चौराहे चौपाल की, किस्सों वाली रात।।
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इकतारे खँजरी नहीं, झाँझ मृदंग सुषुप्त।
पर्व-गीत औ’ लावणी, होने लगे विलुप्त।।
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चौके चूल्हे बँट गए, बाग बगीचे खेत।
दीवारें उठने लगी, घर में फैली रेत।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈