श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 154 ☆
☆ भोजपुरी गीत – इहै प्लास्टिक एक दिन सबके मारी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
आज का मानव समाज सुविधा भोगी हो चला है साधन और सुविधाओं के चक्कर में मानव समाज मौत के मुहाने पर खड़ा है। गाहे-बगाहे न सड़ने वाले बजबजाते प्लास्टिक कचरे के तथा उसकी दुर्गंध से हर व्यक्ति परिचित हैं, ऐसे में आने वाले भयावह खतरे से सावधान रहने का संदेश यह भोजपुरी रचना देती है।उम्मीद है सभी भोजपुरी भाषा भाषी इस रचना को आत्मसात कर समसामयिक रचना का संदेश लोकहित में प्रसारित करेंगे।
पोलिएथ्रिन* के आयल जमाना,
साधन आ सुविधा के खुलल खजाना।
पोलीथीन प्लास्टिक नाम बा एकर,
सड़वले से कचरा सड़े नाही जेकर।
साधन आ सुविधा इ केतना बनवलस,
केतना गिनाई नाम बहुतै कमइलस।
कपड़ा अ लत्ता दवाई मिठाई,
गाड़ी मोटर टीवी अ गद्दा रजाई।।
।।इहै प्लस्टिक एक दिन सबके मारी।।1।।
प्लास्टिक क पत्तल अ प्लास्टिक क दोना,
वोही क ओढ़ना वोही क बिछौना।
वो से छुटल नाहीं कौनो कोना,
जहां देखा प्लास्टिक बिकै बनिके सोना।
प्लस्टिक से सुविधा मिलै ढ़ेर सारी,
मिलै वाले दुख से ना केहू उबारी।
।।इहै प्लस्टिक एक दिन सबके मारी।।2।।
इ बाताबरन में प्रदूषण बढ़ाई,
न कौनों बिधि ओकर कचरा ओराइ।
ऐही खातिर आदत, तूं आपन सुधारा,
दूसर विकल्प खोजा, कइला किनारा।
समझा अ बूझा सब कर जीवन संवारा,
नाहीं त कवनो दिन बनबा बेचारा।
देखा इ सुरसा जस मुंह बवलस भारी,
धरती हुलिया कबौ ई बिगारी।
।।इहै प्लास्टिक एक दिन सबके मारी।।3।।
* प्लास्टिक का वैज्ञानिक नाम
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
(1-09-2021)
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈