श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक विषय पर आधारित माइक्रो व्यंग्य – “दास्ताने दर्द)

☆ व्यंग्य # 173 ☆ “दास्ताने दर्द…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

दास्ताने दर्द…

डाक्टर, अस्पताल, दवाई और ठगी, लुटाई शब्दों के गठबंधन ने सांस लेना दूभर कर दिया है दूरदराज गांव के अपढ़ गरीब डाक्टर, अस्पताल और दवाओं से त्रस्त हैं। पेट खोलकर पैसे का तकाजा करना। लाश को कई दिनों तक वेंटिलेटर में रखकर बिल बढाना, बिल जमा होने पर ही लाश देना ऐसे अनगिनत कितने हादसों की लम्बी कतार है। एक गांव के गरीब मरीज के वेदनामय स्वर को हम इस व्यंग्यकथा के रुप में प्रस्तुत कर रहे हैं जो एक गांव के गरीब मरीज की दर्द भरी दास्तान है।

“गांव के गरीब मरीज के हंसते हुए वेदनामय स्वर”

दुनिया रंगमंच जैसी है, खूब अभिनय भी कराती है, रुलाती भी है…. खुद पर शाबासी भी दे देती है। किस पर विश्वास कर लें।

सूरज आज भी निकला है। हवाएं बह रहीं हैं तेज… बेशर्म के हजारों फूल खिलखिलाकर हंस रहे हैं। नदिया के किनारे काले पत्थर में बैठकर नहाने – धोने की बात सोचते – सोचते फिर पेट में दर्द का इतिहास उखड़ गया है। गांव के नाड़ी वैद्य को दिखाया था तो पेट पकड़ कर बोले थे – शीत वात पित्त का लफड़ा है तुम्हारे पेट में तीनों इकठ्ठे होकर राजनीति कर रहे हैं आपस में दलबदल कर रहे हैं जब पित्त दलबदल कर शीत बन जाता है तो वात पेट में मरोड़ लाता है। दो महीने चूर्ण खाना, दो जनेऊ पहन लेना फिर चुनाव के बाद देखते हैं। बड़ी गजब बात है कि गांव के लिए डॉक्टर बनाए जाते हैं और गांव में कोई पढ़ा लिखा डाक्टर आने तैयार नहीं होता। सुना है कि कहीं जुगाड़ नहीं बैठा तो एक कोटे वाली डाक्टरनी पिछले हफ्ते आयी है गांव। सो हम नहाए भी खूब और धोए भी खूब फिर डाक्टरनी बाई को दिखाने चल दिए, डाक्टरनी ने दो पाइप दोनों कान में डाले और चिटी धप्प जैसी चीज पेट में रख दी… गुदगुदी हुई तो डाक्टरनी बोली – “पांव भारी हैं…. जुड़वे लग रहे हैं। गांव भर में हवा फैल गई कि हमारे पांव भारी हैं, गांव की महिलाएं गर्म भजिया और खट्टी चटनी खिलाकर पुण्य कमाने के चक्कर में थीं। पड़ोसन ने खट्टे आम टोकनी भर भिजवा दिये। हम कहीं मुंह दिखाने काबिल नहीं रहे तुरंत जनेऊ उतार के फेंक दिया। घरवाली भी शक की निगाह से देखने लगी…. एक तो पेट में दर्द और ऊपर से लांछन पे लांछन…. ।तंग आ गये पैर तरफ नजर डाली तो पैरों में खूब सारी सूजन और अब सचमुच पैर भारी लगने लगे। पत्नी बोली – चलो पास के शहर में दिखा लेते हैं, हो सकता है कि डाक्टरनी झूठ बोल रही हो क्योंकि आजकल झूठ बोलने का फैशन बढ़ गया है, कुछ मालूम नहीं तो झूठ बोल कर टाल दो…. झूठ की अपनी महत्ता अपनी उपयोगिता और अपना इतिहास है यूं तो झूठ का ‘विकास’ मानव सभ्यता के साथ हुआ पर इन दिनों झूठ – झटका और विकास का बोलबाला है। वे “झूठ बोले कौआ काटे….” वाला गाना सुनकर खूब झूठ बोलते हैं झटके मारते हैं पर कौआ उनको नहीं काटता इसलिए वे फेंकू उस्ताद कहलाते हैं। झूठे अच्छे दिन आने वाले हैं। बड़ा गजब है झूठ बोलने वाला होशियारी और दिलेरी से सफेद झूठ बोलता है और सुनने वाला उसे पूरी सच्चाई से सुनकर मान लेता है…… पत्नी लगातार बड़बड़ाये जा रही है। पत्नी जब बड़बड़ा रही हो तो बीच में बोलने से फटाके जैसे फट पड़ती है इसलिए उस समय चुप रहने से सुरक्षा बनी रहती है सो हमने चुप रहना ज्यादा ठीक समझा, चुप रहने का भी इतिहास है जनेऊ कान में लगाने से चुप रहने की कला सीख सकते हैं।

चुपचाप कपड़े – लत्ते रखके बस में बैठ गए, शहर पहुंचे तो डॉक्टर बोला – पैर में सूजन मतलब किडनी में गड़बड़ी…… तुरत-फुरत डाक्टर ने कहीं फोन लगाया “किडनी आ गई है”। भर्ती किया सब टेस्ट कराए आपरेशन कर दिया हम का जाने कि आजकल किडनी की चोरी भी होत है। कुछ दिन में छुट्टी हुई बोला – दो महीने बाद दिखाना। दो महीने बाद गये तो पैरों की सूजन और बढ़ गई है डाक्टर बोला – दिल का मामला है हार्ट वाले को दिखाओ, हमने अपना काम कर लिया है।

हार्ट वाला डाक्टर बोला – ‘ब्लॉकेज ही ब्लॉकेज हैं’ तभी तो पैर भारी लग रहे हैं पैरों में भरपूर सूजन है, एंजियोगराफी, एंजियोप्लास्टी और न जाने क्या क्या करके पत्नी के गहने और घर बिकवा दिया, बोला – जी है तो जहान् है…… ।पत्नी फिर बड़बड़ाने लगी – ये सब झूठे हैं, ठगने के बहाने डराते हैं, साले सब परजीवी हैं, गरीबों पर दया नहीं करते, एक किडनी चुरा ली, अब दिल चुराने में लगे हैं, कोई पांव भारी हैं कहता है कोई दिल की नाली चोक की बात करता है,………. हमने फिर पत्नी को टोंका – भागवान थोड़ा चुप रहो डाक्टर सुन लेगा तो बिल बढ़ा देगा…… बिल बढ़ने के नाम पर पत्नी थोड़ा चुप हो गई।

आठ महीने बीत गए थे कुछ हो नहीं रहा था नौवें महीने की शुरुआत हो चुकी थी पेट में उथल-पुथल मची गई, पीड़ा का इतिहास पर्वत बन रहा था पेट और पांव की सूजन इतिहास बनाने के लिए दोंदरा मचा रही है।

कोई ने कहा – बराट को दिखाओ पुराना डाक्टर है मर्ज पकड़ लेता है, सो एक दिन बराट के दवाखाने चले गए। डाक्टर ने लिटाया और पूछा – कैसा लगता है ?

हमें गुस्सा आ गया हम बोले – “का कैसो लगत है” सब डाक्टर परजीवी जैसे लगते हैं, कभी पत्नी भी परजीवी लगती है बच्चे होते तो वे भी परजीवी लगते, सब कुछ परजीवी लगता है कभी पड़ोसी तो कभी मेहमान भी परजीवी लगते हैं। कभी कभी लगता है एक भारत माता है और उसकी आंतों में बड़े बड़े परजीवी मंत्री, नेता अफसर, डाक्टर सब चिपक कर खून चूस रहे हैं फिर कभी लगता है कि 140 करोड़ आबादी अच्छे दिन ले के आओ कह के चिल्ला रही है और उनकी आवाज दबाने हर क्षेत्र में नये-नये परजीवी पैदा हो रहे हैं जिन्होंने देश को भाषा धर्म और जाति के आधार पर बांट रखा है कुछ परजीवी बनकर कुर्सियों में चिपके हैं और भ्रष्टाचार फैला रहे हैं…….
ज्यादा मुंह चलता देख डाक्टर ने ऐसा पेट दबाया कि हमारा मुंह बंद हो गया……….

डाक्टर बोला – जिन परजीवियों की बात कर रहे हो सब तो तुम्हारे पेट में भरे हैं बहुत से जुड़वा भरे हैं। सुन के हम डर गये, बड़ी मुश्किल है कि हमने कुछ किया ही नहीं तो इतने सारे कहां से भर गये, घबराके भागने लगे तो डाक्टर ने पकड़ लिया…. ढाढस बंधाया बोला – “आपरेशन नहीं करुंगा…. गोली से निकाल दूंगा।

हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था सो हम अब हर बात पर हां… हां करते हुए बैठ गए।

डाक्टर ने तीन गोली एक साथ खिलाई। रात भर सोये, सुबह रेल पटरी के किनारे खुले में शौच करने बैठे तो भलभला के निकलने चालू हो गये….

पहले दो निकले आधे निकले और फंस गए तो हमने खींच के निकाला, फिर दो और निकल आए, दो – दो करते निकलते रहे, हम खींचतान करके निकालते रहे। लाईन लगा के निकलते रहे। इतिहास रच डाला। फिर हमने सबको धोया – पोंछा और पत्नी को दिखाया…. पत्नी की जीभ निकल आयी बोली – अरे…. ये तो पटार हैं पटार पेट में पाया जाने वाला एक्स्ट्रा लार्ज परजीवी कृमि है परजीवी बनके चूस डाला। पांव भारी करके बदनामी करायी, इनके चक्कर में किडनी चोरी हुई, दिल का दिवाला निकल गया।
जाओ नाली में फेंक दो इनको…….. ।

पेट से निकले पटारों को देख देख कर अंदर से बड़ी आत्मीयता और ममता फूट रही है क्यों न फूटे…. नौ महीने से पेट में पले बढ़े हैं नौ महीनों से इन्होंने भी भूख प्यास, सुख दुख सब कुछ मेरे साथ सहा है, और पेट में ही रहे आये इधर उधर भगे नहीं, इन्होंने नयी-नयी देशभक्ति जैसी निभाई चूसते भले रहे पर आधार को लिंक करने की मांग नहीं उठाई। जीव हत्या का पाप डाक्टर को लगेगा पर हमें इन पर दया आ रही है ये जो लम्बे लम्बे तंदुरुस्त से पड़े हैं। इन बेचारों ने डाक्टरों के इतिहास के काले पन्ने पढ़ने का मौका दे दिया। पटार महराज ने हमें इतिहास लिखना सिखा दिया।

गिला किसी से नहीं……. शिकायत किसी से नहीं…. दर्द अपनी जगह था पर अपना अपना इतिहास में हमारे पटार महराज का इतिहास निखालिस कहलाएगा, हालांकि इतिहास विवाद का विषय बनता जा रहा है इन दिनों, इतिहास से राजनीति गरमा जाती है, इतिहास से दंगा फसाद का डर हो गया इन दिनों। नाक कटने का डर….. गला काटने के फरमान। इतिहास पर फतवे……. राम… राम ।खेल खतरनाक हो रहा है पर गीता पर हाथ रखकर हम कह रहे हैं कि पटार प्रकरण इतिहास सत्य है और सत्य के अलावा कुछ नहीं है और न ही इस इतिहास में कोई खतरे हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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