श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “अपनी निजता खो रहा…”।)
☆ तन्मय साहित्य #168 ☆
☆ तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… ☆
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चौपालें चौपट हुई, ठंडे पड़े अलाव।
लुप्त हुई पगडंडियाँ, बढ़े सड़क के भाव।।
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पहनावे के संग में, लगे बदलने लोग।
खेती-बाड़ी छोड़ कर, जोड़-तोड़ उद्योग।।
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खेत खले बिकने लगे, नव फैशन की चाल।
घुसे शहर के सेठिये, शातिर चतुर दलाल।।
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अब ना कोयल की कुहुक, ना कौवों की काँव।
नहीं रही अमराइयाँ, बड़ – पीपल की छाँव।।
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रोजगार की खोज में, चले शहर की ओर।
चकाचौंध से दिग्भ्रमित,भटके युवक किशोर।।
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अपनी निजता खो रहा, ग्राम्य-प्रेम पहचान।
सूख रहा रस प्रीत का, रिश्तों का उद्यान।।
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प्रेमपगा सम्मान सुख, अनुशासित परिवार।
छूट गया वह गाँव-घर, जहाँ प्रेम रसधार।।
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हँसी ठिठौली दिल्लगी, किस्से गल्प तमाम।
राम – राम भुले सभी, अभिवादन के नाम।।
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काँकरीट सीमेंट सँग, दिल भी हुए कठोर।
मीठे वचनों की जगह, तू-तू मैं-मैं शोर।।
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पनघट अब सूने हुए, बड़-पीपल की छाँव।
मिटे नीम जंगल कटे, बदल गए हैं गाँव।।
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बूढ़ा बरगद ले रहा, अंतिम साँसें आज।
फिर होगा नव-अंकुरण, प्रमुदित मन के साज।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈