श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “आमंत्रण के बहाने”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ आमंत्रण के बहाने ☆
मान- मनुहार के बीच रिश्तों को निभाने की परम्परा आजकल डिजिटल होती जा रही है, ये तो अच्छी बात है, किन्तु बोलते समय मन में क्या है, ये साफ पता चल जाता है। बुलाने की औपचारिकता भी निभानी है और सामने वाला आए भी न।
आप कल के कार्यक्रम में आ रहे हैं न?
सामने वाले ने कहा, देखिए कुछ घरेलू कार्य है, यदि समय पर पूरा हो गया तो अवश्य आएंगे।
बस फोन कट गया, अब दोनों अपने- अपने मन का करने के लिए स्वतंत्र हैं।
इसी तरह एक और बुलावा आता है आप सपरिवार आइयेगा।
चलो भाई एक साथ कई कार्य निपटाने हैं, बहुत दिनों से उनके यहाँ गए नहीं थे सो मिलना भी हो जाएगा। किन्तु यहाँ की स्थिति उससे भी उलट निकली, मेजबान को इतनी जल्दी थी कि जल्दी से अपने घर में आयोजित की गयी पार्टी को निपटाकर खुद दूसरे के घर मेहमान के रूप में पहुँच गए। अब आपका मेहमान यदि वर्किंग डे होने के कारण देर से पहुँचता है तो वो क्या करे ?आप तो बुलाने के लिए इतने उत्साहित थे कि मेजबानी का क्या धर्म होता है ये भी भूल गए।
ये सब तो नए युग के चलन का हिस्सा है क्योंकि अब क्या कहेंगे लोग सबसे बड़ा रोग इस वाक्य को हमने केवल मोटिवेशनल थीम तक ही लागू नहीं किया है, इसे अपनी सुविधानुसार हम जब चाहें इस्तेमाल करने लगे हैं। क्या ये सब आधुनिक होने की निशानी है या केवल आमंत्रित करने की औपचारिकता है ?
इन स्थितियों का सामना आजकल हर जगह देखने को मिल रहा है, संस्कार और नैतिकता को ताक में रखकर बस स्वयं पर केंद्रित होना अच्छी बात है,cकिन्तु सामान्य से शिष्टाचार को भी यदि निभाना न आए तो गूगल से ही सही मेजबान बनने से पहले सीखें अवश्य है।
इस सबमें मेहमानों को भी अपने धर्म का पालन करना अवश्य आना चाहिए, बिगड़ी बात को बनाने हेतु मुस्कुराते रहें, सकारात्मक होकर हर अवसर का आनन्द उठाएँ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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