डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – आपके हम कुछ नहीं…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं…
मत गलत हमको समझ लेना कहीं
आपके हम कुछ नहीं है, कुछ नहीं।
मीत कह हमको पुकारा
यह बड़ा अहसान है
पूछते हैं लोग अब तो
आपसे पहचान है
आपसे पहचान है बस कुछ नहीं।
आपसे परिचय हुआ है
और अब क्या चाहिये
देर तक बातें हुई हैं
कब कहा अब जाइये
जानता औकात अपनी कुछ नहीं।
मोम सा है आपका दिल
संग दिल हम क्यों कहें
हम नहीं नीरज ये माना
अब कहाँ जाकर रहें
है कहीं कोई जगह या फिर नहीं।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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