श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बहुत हुआ बुद्धि विलास…”।)
☆ तन्मय साहित्य #170 ☆
☆ कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… ☆
लिखना-दिखना बहुत हुआ
अब पढ़ने की तैयारी है
जो भी लिखा गया है,उसको
अपनाने की बारी है।
खूब हुआ बुद्धि विलास
शब्दों के अगणित खेल निराले
कालीनों पर चले सदा
पर लिखते रहे पाँव के छाले,
क्षुब्ध संक्रमित हुई लेखनी
खुद ही खुद से हारी है…..
आत्म मुग्ध हो, यहाँ-वहाँ
फूले-फूले से रहे चहकते
मिल जाता चिंतन को आश्रय
तब शायद ऐसे न बहकते,
यश-कीर्ति से मोहित मन ये
अकथ असाध्य बीमारी है….
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈