डॉ कुन्दन सिंह परिहार
☆ व्यंग्य – दुआरे पर गऊमाता ☆
दरवाज़े से झाँककर गिन्नी ने माँ को आवाज़ लगायी, ‘माँ! दुआरे पर गऊमाता खड़ी हैं।’
माँ बोली, ‘मेरे हाथ फंसे हैं। डिब्बे में से निकालकर दो रोटियाँ खिला दे।’
दो मिनट बाद गिन्नी हाथ में रोटियाँ लिये वापस आ गयी, बोली, ‘नहीं खा रही है।सूँघ कर मुँह फेर लिया।’
माँ बोली, ‘आजकल गायें भी नखरे करने लगी हैं। सामने डाल दे। थोड़ी देर में खा लेगी।’
आधे घंटे बाद माँ ने जाकर देखा तो रोटियाँ वैसे ही पड़ी थीं और गाय आँखें मूँदे खड़ी थी।लौट कर बोली, ‘लगता है इसकी तबियत ठीक नहीं है ।कमज़ोर भी कितनी दिख रही है।’
थोड़ी देर में गिन्नी ने फिर रिपोर्ट दी, ‘माँ,वह बैठ गयी है। बीमार लग रही है।’
सुनकर पिता फूलचन्द के कान खड़े हुए। बाहर निकल कर गाय का मुआयना किया।गाय ने गर्दन एक तरफ लटका दी थी।आँखें बन्द थीं।
फूलचन्द चिन्तित हुए। कहीं गाय ज़्यादा बीमार हो गयी तो! पत्नी से चिन्तित स्वर में बोले, ‘ये तो यहीं बैठ गयी है। कहीं कुछ हो न जाए।’
पत्नी बोली, ‘हो जाएगा तो नगर निगम वालों को बता देना। आकर उठा ले जाएंगे।’
फूलचन्द बोले, ‘तुम समझती नहीं हो। आजकल समय दूसरा चल रहा है। गाय ने दरवाजे पर प्रान छोड़ दिये तो फौरन गऊ-सेवक डंडा पटकते आ जाएंगे। हमारी मरम्मत करेंगे और पुलिस को भी सौंप देंगे। फोटोग्राफर फोटो उतारकर अखबार में छापेंगे। शायद टीवी वाले भी आ जाएंगे। पुलिसवाले आजकल पिटने वालों पर पहले मुकदमा कायम करते हैं, पीटने वालों की तफ्तीश चलती रहती है। ‘ऊपर’ से जैसा इशारा मिलता है वैसी कार्रवाई होती है। पिटने वाले की कोई नहीं सुनता।’
पूरा घर चिन्ता में डूब गया। आधे आधे घंटे में गाय की तबियत का मुआयना होने लगा। गाय की तबियत में कोई सुधार नज़र नहीं आता था। उसकी गर्दन और ज़्यादा ढलकती जा रही थी। आँखें भी वैसे ही बन्द थीं।
फूलचन्द ने दो तीन बार उसे उठाने का यत्न किया। हाथ से पीठ पर थपकी दी, टिटकारा, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। इससे ज़्यादा कुछ करने की उनकी हिम्मत नहीं हुई।
शाम होते होते फूलचन्द की हिम्मत जवाब दे गयी। पत्नी से बोले, ‘तुम बच्चों को लेकर भाई के घर चली जाओ। यहाँ मैं देखता हूँ। पता नहीं भाग्य में क्या लिखा है।’
पत्नी बच्चों को समेट कर चली गयी। फूलचन्द के लिए खाना-सोना मुश्किल हो गया। हर आधे घंटे में दरवाज़े से झाँकते रहे। गाय वैसे ही पड़ी थी। थोड़ी थोड़ी देर में पत्नी और साले साहब फोन करके कैफ़ियत लेते रहे।
गाय की ड्यूटी करते करते सुबह करीब चार बजे फूलचन्द को झपकी लग गयी। करीब सात बजे आँख खुली तो धड़कते दिल से सीधे दरवाज़े की तरफ भागे। झाँका तो गाय अपनी जगह से ग़ायब थी। दरवाज़ा खोलकर बाहर खड़े हुए तो गाय चार घर आगे वर्मा जी के दरवाज़े पर खड़ी दिखी।
फूलचन्द ने दौड़कर पत्नी को फोन लगाया। हुलस कर बोले, ‘आ जाओ। गऊमाता उठ गयीं। अभी वर्मा जी के घर के सामने खड़ी हैं। भगवान को और गऊमाता को लाख लाख धन्यवाद।’
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश