डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “समानाधिकार”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 4 ☆
☆ समानाधिकार ☆
सड़क के किनारे
झूठे पत्तलों को चाटते देख
अनगिनत प्रश्न मन में कौंधते
कैसी तुम्हारी दुनिया
कैसा यह जग-व्यवहार
तुम कहलाते सृष्टि-नियंता
करुणा-सागर
महिमा तुम्हारी अपरंपार
तुम अजर,अमर,अविनाशी
घट-घट वासी
सृष्टि के कण-कण में
पाता मानव तुम्हारा अहसास
परन्तु,अच्छा है…
निराकार हो,अदृश्य व शून्य हो
यदि तुम दिखलाई पड़ जाते
हो जाता तुम्हारा भी बंटाधार
कैसे बच पाते तुम
प्रश्नों के चक्रव्यूह से
कैसे सुरक्षित रख पाते
निज देह,निज ग़ेह
अब भी समय है
होश में आओ
ऐसी सृष्टि की रचना करो
जहां सब को मिलें
समानावसर
व समानाधिकार
तभी हो पाएगी
इस जहान में सर्वदा
तुम्हारी जय जयकार
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com