हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 161 – गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 161 – गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में…  ✍

मूरत रखकर मन मंदिर में

पूजा किया करूँगा

हाजिर नहीं रहूँगा

 

भीड़ भरा है तीरथ तेरा

अविरल यात्री आते

आँखों के इस घटाटोप में

तेरा चेहरा देख न पाते

धक्का मुक्की के ये करतब, मैं तो नहीं करूँगा।

 

सब दर्शन की खातिर आते

पर पूजन का ढोंग रचाते

तेरा रूप चुराने वाले

गढ़ लेते हैं रिश्ते नाते

रिश्तों की इस भागदौड़ में मैं तो नहीं पडूंगा।

 

सिर्फ हाजिरी से क्या होता

असली चीज समर्पण होती

अपनी अपनी प्रेम पिपासा

अपना अपना दर्पण होती

यह जीवन तुमको ही अर्पित क्या उपयोग करूँगा।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈