(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है डा संजीव कुमार जी की पुस्तक “कोणार्क ” पर पुस्तक चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 131 ☆
☆ “कोणार्क” – डा संजीव कुमार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
कोणार्क
डा संजीव कुमार
इंडिया नेट बुक्स,नोयडा
मूल्य १७५ रु, पृष्ठ ११६
चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
कोणार्क पर हिन्दी साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है. कोणार्क मंदिर के इतिहास पर परिचयात्मक किताबें हैं. प्रतिभा राय का उपन्यास कोणार्क मैंने पढ़ा है. जगदीश चंद्र माथुर का नाटक “कोणार्क” भी है. स्फुट लेख और अनेक कवियों ने कोणार्क पर केंद्रित कवितायें लिखी हैं. इसी क्रम में साहित्य सेवी डा संजीव कुमार ने कोणार्क नाम से हाल में ही मुक्त छंद में कविता संग्रह या बेहतर होगा कि कहें कि उन्होने खण्ड काव्य लिखा है.
पुरी और भुवनेश्वर मंदिरों की नगरियां है. कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में आज से लगभग ९०० वर्षो पूर्व बनवाया गया था. पुरातत्वविदों के अनुसार यह कलिंग शैली में बना मंदिर है. यह स्वयं में अनूठा है, क्योंकि मंदिर रथ की आकृति में हैं. 12 जोड़ी भव्य विशाल पहियों की आकृतियां हैं, 7 घोड़े रथ को खींच रहे हैं. इस दृष्टि से सूर्य देव के रथ की आध्यात्मिक भारतीय कल्पना को मूर्त रूप दिया गया है. समुद्र तट पर मंदिर इस तरह निर्मित है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है. समय की आध्यात्मिकता दर्शाते कोणार्क की कहानी रोचक है. इस मंदिर को वर्ष 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था. इस महत्व के दृष्तिगत कोणार्क पर लिखा जाना सर्वथा प्रासंगिक है. मैने पर्यटन के उद्देश्य से कोणार्क की सपरिवार यात्रा की है. वहां मोमेंटो की दूकानो पर कोणार्क पर लिखी किताबें भी देखी थीं, उनमें एक श्रीवृद्धि डा संजीव कुमार की किताब से और हो गई है.
कोणार्क का मंदिर तो बना पर,आज तक वहां कभी विधिवत पूजा नहीं हुई. इसी तरह भोपाल के निकट भोजपुर में भी एक विशालतम शिवलिंग की स्थापना की गई थी पर वहां भी आज तक कभी विधिवत पूजा नहीं हुई. कोणार्क को लेकर किवदंतियां हमेशा से ही लोगों के बीच चर्चित रही हैं. ये ही कथानक संजीव जी की कविताओ की विषय वस्तु हैं. खजुराहो की ही तरह मंदिर की बाहरी दीवारों पर रति रत मूर्तियां हैं, जो संदेश देती हैं कि परमात्मा का सानिध्य पाना है तो भीतर झांको किन्तु वासना को बाहर छोडकर आना होगा.
संजीव जी मंदिर के महा शिल्पी को इंगित करते हुये लिखते हैं
समेटे अपने आँचल में
खड़ा है आज भी
एक कालखंड
जिसमें निहित थी
कल्पना की उड़ान
नभ पर उड़ते सूर्य को
अपनी धरती पर उतार लाने का स्वप्न
जो अपनी अभिनवता में
भर लाया होगा।
उत्साह का पारावार और कल्पना के उत्कर्ष
उकेर गया होगा
उन पत्थरों पर
जो हो उठा जीवंत
कला की प्राचुर्यता के साथ विभिन्न मुद्राओं में
जीवन की भंगिमाओं में
मैने स्व अंबिका प्रसाद दिव्य का उपन्यास खजुराहो की अतिरूपा पढ़ा था. उसमें वे कल्पना करते हैं कि शिल्पी ने अतिरूपा को विभिन्न काम मुद्राओ में सामने कर उन जीवंत मूर्तियों को देह के प्रेम की व्याख्या हेतु तराशा रहा होगा.
कवि डा संजीव कुमार भी लिखते हैं
संगिका थी वह
मेरे बचपन की
जिसे पाया था मैंने
बाल हठ से
कितने ही वर्षों के बाद
और आज
हमारी देहों का
कण कण
महकता था
हमारे प्रेम का साक्षी बनकर
हमने खेले थे
बचपन के खेल भी
और तरूणाई की केलि भी
पर यौवन हो गया
समर्पित
किसी राजहठ को
और बस
एक असंभव को
संभव बनाने में
विभिन्न कविताओ से गुजरते हुये कोणार्क के महाशिल्पी उसके पुत्र की कथा चित्रमय होकर पाठक के सम्मुख उभरती है.
मंदिर की वर्तमान भग्नावस्था को देख वे लिखते हैं…
काश! उग सकता
वह स्वप्न आज भी
इन भग्नावशेषों के बीच
जहाँ उतरता
किरणों भरा रथ
दिवाकर का
और जाज्वल्यमान
हो उठता
भारत का कण क
बरस जाती चेतनता विहस पड़ता
नव जीवन
उसी कोणार्क के उच्च शिखरों से
भुवन भर में
और नवचेतना
संगीत लहरियों में बसकर
हवा में बहती.
कोणार्क पर काव्य रूप में लिखी गई पुस्तकों में यह एक बेहतरीन कृति है, जिसके लिये डा संजीव कुमार बधाई के सुपात्र हैं.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८
readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈