डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  व्यंग्य ‘जवानी की दीवानगी’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 183 ☆

☆ व्यंग्य ☆ जवानी की दीवानगी

धर्म के अनुसार हमारी ज़िन्दगी में चार आश्रम बताए गये हैं। ब्रम्हचर्य से शुरू कीजिए और सन्यास से होते हुए शालीनता से ज़िन्दगी से बाहर हो जाइए। समझदार लोग इस क्रम को स्वीकार करते हैं, लेकिन कुछ लोग ज़िन्दगी में ‘रेवर्स गियर’ लगाने में लगे रहते हैं। कोशिश करते हैं कि उम्र का सिलसिला जवानी से आगे न बढ़े। इसी चक्कर में अपनी रंगाई-पुताई करते रहते हैं, जैसे कि रंगाई-पुताई से पुरानी इमारत फिर नयी हो जाएगी। उम्र किसी बरजोर घोड़ी की तरह भागती जाती है और वे रस्सी पकड़े घिसटते जाते हैं।

बाबा रामदेव अपने च्यवनप्राश के प्रचार में बताते हैं कि महर्षि च्यवन इस औषधि का सेवन करके बूढ़े से जवान हो गये थे। बाबा यह नहीं बताते कि उनका च्यवनप्राश खाकर कितने बूढ़े जवान हुए। उन्हें बूढ़े से जवान हो जाने वाले लोगों का फोटो चस्पाँ करना चाहिए और फोटो के नीचे ‘च्यवनप्राश के सेवन से पहले’ और ‘च्यवनप्राश के सेवन के बाद’ लिखना चाहिए। अनेक कंपनियाँ दीर्घकाल से च्यवनप्राश बनाती रही हैं, लेकिन अभी तक ऐसी जानकारी नहीं मिली कि कोई बूढ़ा अपनी टेकने की लाठी छोड़कर छलाँगें भरने लगा हो।हमारे देश में जवानी की ज़बरदस्त ललक रही है। सयाने महाकवि केशवदास अपने श्वेत केशों को इसलिए कोसने लगे थे कि उनकी पोतियों की उम्र की  ‘चंद्रवदन मृगलोचनी’ कन्याएं उन्हें ‘बाबा’ कहकर पुकारने लगी थीं। अब श्वेतकेशी व्यक्ति को कन्याएं ‘बाबा’ न कहें तो क्या कहें? उस वक्त अगर कोई ‘हेयर डाई’ उपलब्ध होता तो शायद महाकवि यह छीछालेदर कराने वाला दोहा लिखने से बच जाते। ज़ाहिर है कि वे अपने को रीतिकाल के प्रवाह में बहने से नहीं बचा पाये।
पुराणों में राजा ययाति की कथा मिलती है जिन्होंने अपने पुत्र से उसकी जवानी माँग ली थी। ययाति दलितों के गुरु शुक्राचार्य के शाप से असमय ही वृद्ध हो गये थे। बार-बार उनकी मृत्यु की घड़ी आती थी और बार-बार वे यम से अनुनय- विनय करके घड़ी को टाल देते थे। अंततः यम ने उनके सामने शर्त रखी कि आगे वे तभी जीवित रह सकते हैं जब वे अपने किसी पुत्र से उसकी जवानी माँग लें। उनके पाँच पुत्रों में से सबसे छोटा पुरु ही उन्हें अपनी जवानी देने को राज़ी हुआ और राजा पुत्र की जवानी पाकर भोग-विलास में डूब गये। अंततः उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने पुरु को उसका यौवन लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया।

ऐसे ही पिता के आज्ञाकारी भीष्म पितामह और हम्मीर हो गये हैं। भीष्म के पिता राजा शांतनु सत्यवती पर अनुरक्त हो गये थे और उससे विवाह करना चाहते थे, किंतु सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी कि सत्यवती की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी हो। परिणामतः पितृभक्त भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण ले लिया। प्रसन्न होकर पिता ने उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया। हम्मीर के बारे में कथा है कि उन्होंने अपने लिए आये विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर उस कन्या की शादी अपने पिता से करवा दी क्योंकि उनके पिता ने परिहास में प्रस्ताव लाने वाले से कह दिया था कि उनके (पिता के) लिए भला विवाह प्रस्ताव कौन लाएगा?

ऐसे ही एक पितृभक्त राजा मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज थे जिन्होंने पिता के आदेश पर अपने को आरे से चिरवा दिया था। व्यंग के पितृपुरुष हरिशंकर परसाई ऐसी पितृभक्ति के पक्षधर नहीं थे। अपनी रचना ‘कंधे श्रवण कुमार के’ में उन्होंने मोरध्वज की कथा के विषय में लिखा, ‘कथा के इस अन्त ने कितनी पीढ़ियों को आरे से चिरवा दिया होगा।’
जवानी को पकडे रहने की इसी  ख्वाहिश में ब्यूटी पार्लर, कॉस्मेटिक सर्जरी, एंटी एजिंग क्रीम का धंधा दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ रहा है। ‘शो बिज़नेस’ में बुढ़ापे का बड़ा ख़ौफ़ होता है क्योंकि बुढ़ापा धंधे को चौपट करने वाला होता है। एक फिल्म अभिनेत्री के बारे में पढ़ा था कि उन्होंने अपने चेहरे पर बुढ़ापे के चिन्हों को रोकने के लिए 29 बार सर्जरी करवायी, लेकिन फिर भी वे बुढ़ापे को प्रकट होने से रोक नहीं पायीं।

जवानी को बरकरार रखने की कोशिश में लगे लोगों को यह समझ में नहीं आता कि दुनिया में यदि बुढ़ापे और मृत्यु की तरफ बढ़ती यात्रा रुक जाएगी तो दुनिया की हालत क्या हो जाएगी। अंग्रेज़ कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग समझदार थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता में लिखा, ‘मेरे साथ बूढ़े हो। जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभी होने को है, जीवन का वह अंतिम चरण जिसके लिए प्रथम चरण निर्मित हुआ।’ अमेरिकन कवयित्री एमिली डिकिंसन ने लिखा, ‘उम्र बीतने के साथ हम पुराने नहीं होते, बल्कि नये होते चले जाते हैं।’

परसाई जी अपनी रचना ‘पहला सफेद बाल’ में देश की नयी पीढ़ी को संबोधित करते हुए ययाति के संदर्भ में लिखते हैं, ‘हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिए। ययाति जैसे स्वार्थी हम नहीं हैं जो पुत्र की जवानी लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ उसने मुँह भी काला कर लिया।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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