डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – भटक रहा है बंजारे सा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 131 – भटक रहा है बंजारे सा…
व्याप गई है ऐसी जड़ता, जैसी कमी न व्यापी ।
मौसम का मन बदल गया है
करता है मनमानी
ऊपर से तुम शह देते हो
लगे मुझे हैरानी।
अपने पाँव देख चुप बैठे, जैसे कोई कलापी।
यादों की वंशी बजती थी
वह है बात पुरानी
अता पता कुछ नहीं याद का
शायद कहीं हिरानी।
घटनाओं का क्रम अटूट है, लगता जीवन शापी।
बात कौन सोची थी मैंने
सोच सोच कर हारा
ठीक नहीं हैं मन के लच्छन
निकल गया आवारा।
भटक रहा है बंजारे सा, राह सड़क सब नापी।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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