सुश्री ऋता सिंह

संक्षिप्त परिचय

सुश्री ऋता सिंह जी शिक्षिका हैं। पिछले चालीस -पैंतालीस वर्षों से हिंदी अध्ययन कर रही हैं। हिंदी के साथ -साथ मराठी, अंग्रेज़ी ,पंजाबी तथा मातृभाषा बाँगला भाषा पर  भी अच्छी पकड़ है। पिछले सोलह वर्षों से लैंग्वेज कन्सल्टेंट ऍन्ड टीचर ट्रेनर के रूप में भी सेवा प्रदान करती आ रही हैं। बच्चों के मन में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम निर्माण करने हेतु भाषा पर  विविध खेलों द्वारा अपनी छोटी – सी संस्था चलाती हैं। छात्रों को भाषा सीखने में आसानी हो इसलिए कई खेलों का निर्माण  किया है। आपने देश -विदेश का प्रचुर भ्रमण किया है। यात्रा वर्णन पर लेख लिखने में आनंद लेती हैं। कहानी, कविता ,संस्मरण आदि सभी क्षेत्र में लिखने में रुचि रखती हैं। हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे द्वारा हिंदी श्री से 2021 में सम्मानित की गई हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –

  • खेल -खेल में सीखें हिंदी ( भाग 1 से 5)
  • नानीमाँ की झोली से – सचित्र द्विभाषीय पुस्तकें (दो प्रकाशित हुईं हैं )
  • प्रतिबिंब – कविता संग्रह
  • पुरानी डायरी के फटे पन्ने – कहानी संग्रह
  • स्मृतियों की गलियों से – संस्मरण संग्रह
  • अनुभूतियाँ – कहानी संग्रह

(सुश्री ऋता सिंह जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आपने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हार्दिक आभार। अब आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…नागालैंड… .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 01 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… नागालैंड…  – ?

भारत तीर्थस्थलों का देश है। साथ ही अनेक राज्य अपनी संस्कृति, त्योहार खान-पान की विविधता और  विशेषता के लिए भी प्रसिद्ध है। धर्म,जाति,भाषा,आहार सब कुछ अलग अलग होने के बावजूद भी संपूर्ण देश एक अदृश्य सूत्र से बँधा है और वह है भारतीयता।

इसी सूत्र और रंगीन भूमि के त्योहारों का आनंद लेने इस वर्ष 2022 में हमारे परिवार ने नागालैंड की यात्रा का निर्णय लिया।

अब संपूर्ण भारत में यातायात के साधन भरपूर उपलब्ध हैं। पर्यटक तो अब नियमित रूप से विमान, रेलगाड़ी तथा  अपनी मोटरगाड़ी द्वारा भी यात्रा करते दिखाई देते हैं। हमारे महामार्ग अत्यंत सुलभ, सुंदर और सुविधाजनक बनाए गए हैं। सभी राज्य अब महामार्गों द्वारा जुड़े हुए भी हैं।

नागालैंड में प्रतिवर्ष हॉर्नबिल फेस्टीवल मनाया जाता है। यह त्योहार प्रति वर्ष 1 दिसंबर से 10 दिसंबर तक मनाया जाता है। इस स्थान में सत्रह आदिवासी (ट्राइबल कम्यूनिटी)  वास करते हैं। इस भूभाग पर हॉर्नबिल नामक पक्षियों की प्रजाति बहुसंख्या में पाए जाते थे। यहाँ के नागा जाति के आदिवासी अपने सिर पर हॉर्नबिल पक्षी के पंख लगाते हैं। इन पंखों को प्राप्त करने की उत्कट इच्छा ने आज इस सुंदर पक्षी की प्रजाति को प्रायः विलुप्त होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।

सन 2000 में यहाँ पर पहली बार सभी आदिवासी प्रजातियाँ एकत्रित हुईं और पहली ही बार फेस्टीवल मनाया गया। इसका मूल उद्देश्य था नागा आदिवासियों की आपसी मतभेदों को दूर करना, उनकी  संस्कृति से राष्ट्र के अन्य प्रदेशों को परिचित कराना तथा देश की मुख्य धारा से उन्हें जोड़ना। इस उत्सव ने न केवल नागा जन जातियों की संस्कृति को पुनर्जीवित किया बल्कि नागालैंड की सुंदरता से पूरे संसार को परिचित भी कराया।

नागालैंड भारत के उत्तरी -पूर्व राज्यों में से एक है। यहाँ के सभी राज्य सदा से ही उपेक्षित रहे और भारत के बाकी राज्यों से कुछ हद तक कटे भी रहे। सन 1962 में  इसे अलग राज्य का स्टेटस मिला। फिर भी राज्य उपेक्षित ही रहा।

सन 2000 से हॉर्नबिल फेस्टीवल देखने के लिए दर्शकों की संख्या बढ़ने लगीं तो होटल और होम स्टे की व्यवस्था भी होती रही। बड़ी संख्या में होटल खुले और विदेशों से भी यात्री इस रंगीन उत्सव का आनंद लेने आने लगे। नागावासियों का उत्साह बढ़ा,शहर स्वच्छ बनते रहे और लोगों को काम मिलने लगा। इस तरह वे अपनी पहचान बनाने लगे, भारत के मानचित्र ही नहीं संसार के मानचित्र पर उनकी चमक और पहचान बनी। बल्कि नागा आदिवासियों की संस्कृति फिर एक बार जागृत हुई।

आपको नागालैंड के निवासी भारत के अन्य राज्यों में कम ही दिखाई देंगे। वे सेल्फ शफीशियंट प्रजातियाँ तो हैं ही साथ ही उनसे बातचीत करने पर एक और बात सामने आई कि वे भारत के अन्य राज्यों में अपने अलग चेहरे,कद -काठी और भोजन आदि के कारण सहर्ष स्वीकृत नहीं हैं। यह अत्यंत दुख की बात है।

कोहीमा  नागालैंड की राजधानी है। पर यह शहर पहाड़ों से घिरा होने के कारण यहाँ पर रेलवे और हवाई अड्डे की व्यवस्था नहीं है। इस शहर से सत्तर किलोमीटर की दूरी पर दीमापुर नामक शहर है। यहाँ एक छोटा -सा हवाई अड्डा है, रेलगाड़ी की सुविधा उपलब्ध है। यह नागालैंड का सबसे बड़ा शहर है। ऑटोरिक्शा, टैक्सियाँ और प्राइवेट टैक्सियाँ भी उपलब्ध हैं। सभी पर्यटक दीमापुर तक आते हैं और आगे की यात्रा टैक्सियों द्वारा पूरी करते हैं।

दीमापुर शहर की भीतरी सड़कें खास ठीक नहीं क्योंकि उपेक्षित राज्य होने के कारण रास्तों की मरम्मत संभवतः कभी की ही न गई होगी। लेकिन हॉर्नबिल फेस्टीवल के चलते दीमापुर से कोहीमा तक का रास्ता बहुत ही सुंदर और शानदार बनाया गया है जिस कारण डेढ़ -दो घंटों में टैक्सी द्वारा कोहीमा पहुँचा जा सकता है। यहाँ सड़कों के किनारे लोकल फलों की दुकानें दिखाई देती हैं। मीठे और सस्ते अनन्नास का हमने भरपूर स्वाद लिया। यहाँ लंबे -लंबे अनन्नास काटकर, मसाले लगाकर एक पतली बाँस की सलाख  उसमें ठूँस देते हैं जिससे इसे खाने में सुविधा हो जाती है। हमने बचपन को याद करते हुए इसका आनंद लिया।

हॉर्नबिल फेस्टीवल  कोहिमा में आयोजित किया जाता है। कोहिमा से 12 किलोमीटर की दूरी पर किसामा नामक छोटा -सा कस्बा है जहाँ पिछले 22 वर्षों से उत्सवों का उत्सव हॉर्नबिल फेस्टीवल मनाया जाता  आ रहा है।

यहाँ की आबादी  ईसाई धर्म को मानती है। 2022 का  वर्ष इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा कि इस राज्य में  ईसाई धर्म की नींव रखे 150 वर्ष पूरे हुए हैं। इसका भी हर्षोल्लास सुसज्जित शहर को देखकर लगाया जा सकता है। क्रिसमस इनका सबसे बड़ा त्योहार है।

हर भारतीय को नागालैंड आने से पूर्व ILP ( Internal line of permit) लेने की अनिवार्यता होती है। यह ऑनलाइन उपलब्ध है। अगर आप इस उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं तो जुलाई के महीने में ही बुकिंग कर लें कारण ऑक्तूबर माह से सभी होटल और होम स्टे बुक हो जाते हैं। हमने सितंबर में बुकिंग की थी और हमें ऊँची कीमत भरनी पड़ी। पाँच हज़ार वाले कमरे पंद्रह हज़ार में बुक होते हैं। इससे बचा जा सकता है।

हमारी यात्रा पुणे से प्रारंभ हुई,दिल्ली होते हुए  हम दीमापुर पहुँचे। लोग अपने शहरों से गुवाहाटी पहुँचकर भी रेल द्वारा दीमापुर पहुँच सकते हैं।

 दीमापुर लकड़ी और बेंत से बननेवाले वस्तुओं के कुटीर उद्योगों का शहर  है जो अपने आप में देखने लायक स्थान है। इसके आसपास कुछ गाँव भी हैं। इन गाँवों की महिलाएँ घर-घर में  सुंदर, आकर्षक, टिकाऊ विविध प्रकार की टोकरियाँ, फल रखने के बास्केट और हाथ करघे पर कई प्रकार की वस्तुएँ बुनती हैं। इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है। यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा उद्योग है। हॉर्नबिल फेस्टीवल के दौरान बड़ी मात्रा में इन वस्तुओं और बेंत के फर्नीचर आदि की बिक्री होती है। हम इन्हीं गाँवों को देखना चाहते थे। हम जब गाँवों में पहुँचे तो तैयार माल हॉर्नबिल फेस्टीवल के लिए पैक किए जा रहे थे।

दीमापुर के बाज़ार में  घूमने पर ही  यहाँ के लोगों के  खानपान के तौर – तरीकों से हम परिचित हुए। नागा जाति के लोग दुबले-पतले तथा कद के छोटे होते हैं। शारीरिक श्रम तथा जलवायु के कारण हाई प्रोटीन डायट इनकी आवश्यकता होती है। इस कारण बाज़ार में आपको कई प्रकार के जीवित कीड़े, इल्लियाँ,रेशम कीड़े, मछलियाँ, मेंढक, टिड्डे, घोंघें,  केंचुएँ,आदि दिखाई देंगे। साथ ही यहाँ के निवासी सुअर तथा कुत्ते के माँस का भी बड़ी मात्रा में सेवन करते हैं। इसे डेलिकेसी कहते हैं। कुत्ते का माँस होटलों में नहीं दिए जाते परंतु सुअर का माँस बहुप्रचलित है। यह उनका भोजन है अतः उसका सम्मान करना हम सबका धर्म है।

हम दो सखियाँ शाकाहारी हैं, हमें शाकाहारी भोजन आसानी से ही प्राप्त हुए हैं। लोग अफवाह फैलाते हैं कि शाकाहारी भोजन की यहाँ व्यवस्था नहीं है। यह ग़लत है। हमें शाक सब्ज़ियाँ और कई प्रकार के फल बाज़ार में दिखाई  दिए। होटलों ने उत्तम शाकाहारी भोजन, सूप,सलाद आदि की व्यवस्था की और हम दोनों सखियों ने इसका भरपूर आनंद लिया।

यहाँ के लोग भात खाना पसंद करते हैं। भोजन में मसाले के रूप में कई जड़ी-बूटियों तथा शाक का उपयोग करते हैं। यहाँ शराब की दुकानें नहीं हैं। यहाँ के लोग घर -घर में राइस बीयर बनाते हैं। यह उनकी बहुप्रचलित मदिरा है।

तीन दिन दीमापुर में रहने के बाद हम लोगों ने खोनोमा होते हुए कोहिमा जाने का फैसला लिया।

खोनोमा एक छोटा –  सा गाँव है जिसे  एशिया का ग्रीनेस्ट विलेज कहा जाता है। वास्तव में यहाँ रहनेवाले गाँव वासी इस बात से वाकिफ़ हैं और वे अपने गाँव को बहुत साफ़ -सुथरा रखते हैं। जगह -जगह पर बेंत से बने कूड़ेदान के रूप में  टोकरियाँ रखी दिखाई दी। इस गाँव को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं जिस कारण यहाँ एक गाइड सेंटर भी खोला गया है, जहाँ पर प्रति सदस्य दो सौ रुपये देकर पैंतालीस मिनट में पूरा गाँव चलकर दिखाए जाने की व्यवस्था की गई है। गाँव में तीन हज़ार लोग रहते हैं। सभी ईसाई धर्म को मानते हैं। यह अंग्रेज़ों की देन है। आदिवासियों को वे अपने धर्म का जामा पहना कर गए और वे अपनी प्राकृतिक पूजा-पाठ से विमुख हो गए। खैर यहाँ धर्मों पर विवाद या झगड़े नहीं। यहाँ एक विशाल गिरिजाघर है और सभी उत्साह से क्रिसमस मनाते हैं। इस छोटे से गाँव में छह पाठशालाएँ हैं। शाम होते होते चार बजे बादल नीचे उतर आए और हरियाली से भरे जंगलों के पेड़ पौधों को ओस की बूँदों से सजाने लगे। यहाँ चार साढ़े चार तक अंधकार हो जाता है। ठीक उसी तरह यहाँ प्रातः भी साढ़े चार बजे सूर्यदेव दर्शन देते हैं। यहाँ से आगे हम छह किलोमीटर की दूरी पर कोहिमा पहुँचे।

कोहिमा छोटा सा शहर है, यहाँ खास दर्शनीय स्थल नहीं है। सुभाषचंद्र बोस इस शहर में कभी रहे थे और नागाओं का उन्हें साथ मिला था,इस इतिहास का वहाँ कहीं उल्लेख नहीं है। इस बात का हमें बहुत दुख हुआ। यहाँ  एक विशाल वॉर सेमिट्री है जहाँ ब्रिटिश सैनिकों के कब्र बने हुए हैं। पर्यटक इस स्थल को देखने जाते हैं। यहाँ दुकानें सात बजे तक खुल जाती है और चार बजे तक सब बंद भी कर दिए जाते हैं।

अर्ली टू बेड,अर्ली टू राइज़ यहाँ का मूल मंत्र है। लोग स्वस्थ,परिश्रमी तथा हँसमुख हैं।

हमें पूरे पर्यटन के दौरान एक भी भिखारी नज़र नहीं आया। यह एक बहुत बड़ी बात है। यहाँ आज भी संयुक्त परिवार की प्रथा है। घर के बड़े बूढ़ों का सम्मान सभी करते हैं। बुजुर्ग अपने घर के छोटे बच्चों के साथ काफी समय व्यतीत करते हैं।

हॉर्नबिल फेस्टीवल इस राज्य का आकर्षण बिंदु है, सभी वस्तुएँ बहुत कीमती हो जाती हैं। पाँच -छह किलोमीटर की यात्रा के लिए पाँचसौ रुपये लोकल टैक्सियाँ लेती हैं।

यहाँ मेरू,उबेर या ओला टैक्सियाँ नहीं चलतीं बल्कि काली-पीली टैक्सियाँ शेयर में चलती हैं। ये सुविधा सर्वत्र उपलब्ध है। यही लोकल ट्रान्सपोर्ट है। सड़कें पहाड़ी और संकरी हैं जिस कारण छोटी गाड़ियाँ बहुसंख्यक हैं। यहाँ गाड़ी पर कैरियर लगाने की इज़ाज़त नहीं है।

हॉर्नबिल फेस्टीवल

1 दिसंबर से यह पर्व प्रारंभ हुआ। पर्व प्रारंभ होने के कई माह पूर्व तैयारी शुरू होती है। यहाँ हर नागा आदिवासी अपने तौर-तरीके और खानपान की व्यवस्था के साथ अपने आवास की व्यवस्था का रेप्लिका प्रस्तुत करता है इसे मोरॉन्ग कहते हैं। इस वर्ष 17 प्रजातियों में से छह प्रजातियों ने हिस्सा नहीं लिया है। ये छह प्रजातियाँ मुख्य नागालैंड राज्य से अलग होने की माँग रखते हैं।

किसामा में पहुँचकर पर्यटक नागा जातियों के मोरॉन्ग पर जाकर समय व्यतीत कर सकते हैं। उनके साथ बातचीत कर तस्वीरें खींच सकते हैं। उनके भोजन का आनंद ले सकते हैं। वस्त्र तथा आभूषण भी खरीद सकते हैं। नागा अत्यंत मिलनसार जाति हैं। वे पर्यटकों के साथ समय बिताना भी पसंद करते हैं।

इस वर्ष देश के उपराष्ट्रपति श्री धनकड़ जी सपत्नीक इस उत्सव के लिए उपस्थित हुए। शाम को चार बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। विशाल मैदान के एक तरफ मंच बना हुआ है तथा तीनों ओर पर्यटकों के बैठने की सुविधाजनक व्यवस्था है। स्वच्छ शौचालय की भी व्यवस्था है। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और इंग्लैंड के राजनीतिक उच्च पदाधिकारी तथा राज्यपाल इस वर्ष आमंत्रित थे। शहर के प्रमुख चर्च के मुख्य पादरी ने सभी को शुभकामनाएँ दी तथा प्रार्थना से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। नागालैंड के मुख्यमंत्री, पर्यटन विभाग के मंत्री, मान्यवर धनकड़ जी तथा विदेश से आए आमंत्रित सदस्यों ने अपने विचार प्रकट किए।

1 तारीख को कुछ ही नृत्य प्रस्तुत किए गए। एक नागा छात्रा ने गिटार पर राष्ट्रगीत बजाकर सबको मंत्र मुग्ध कर दिया।

2 तारीख सुबह 10 बजे से दर्शक एकत्रित होने लगे। 11.30 बजे तक विविध नागा प्रजातियों ने अपने नृत्य प्रदर्शन किए। फिर मोरॉन्ग दर्शन तथा नागा भोजन के लिए 1.30 बजे तक समय दिया गया। फिर कुछ नृत्य प्रदर्शन हुए और फिर शाम को 3बजे से अंग्रेज़ी और बॉलीवुड संगीत पर वहाँ के निवासियों ने नृत्य प्रदर्शित किए। इस तरह दस दिन कार्यक्रम चलते रहे।

नागाप्रजातियों के वस्त्र अत्यंत रंगीन होते हैं। लाल, काला और सफेद मूल रंग हैं। इन कपड़ों की बुनाई भी अलग तरीके से होती है। हर प्रजाति के स्त्री -पुरुष के सिर पर मुकुट जैसा पहना जाता है इसे हेडगीयर कहते हैं। हरेक के अस्त्र-शस्त्र अलग होते हैं। उनके गीत और उनकी पुकार भी अलग होती है। वे नृत्य प्रस्तुत करते समय खूब आवाज़ करते हुए आते हैं। वे नंगे पैर चलते हैं तथा पुरुषों का ऊर्ध्वांग वस्त्रहीन होता है। स्त्री -पुरुष के वस्त्र घुटने तक ही होते हैं। कुछ प्रजातियाँ अपने पैरों पर पेंटिंग करते हैं। सभी खूब आभूषण पहनते हैं।

हर प्रजाति अत्यंत अनुशासित दिखाई देती है।

प्रतिदिन जो नृत्य प्रस्तुत किए गए उनमें उनके जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाया गया।

फसल काटे जाने, खलिहान में रखे जाने की कथा नृत्य द्वारा प्रस्तुत की गई।

नवविवाहित दंपत्ति विवाह में आए मेहमानों को उपहार देकर विदा करते हैं इस प्रचलन को नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।

अपने अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग युद्धाभ्यास में किस तरह उपयोग में लाया जाता था तथा वॉर क्राय कैसी ध्वनि होती थी यह भी दर्शाया गया। कुल मिलाकर यह आनंददायी उत्सव रहा है।

आज नागालैंड के आदिवासी शिक्षित हैं, वे अलग अलग जगह पर नौकरी करते हैं। इसकारण अलग -अलग प्रकार के नृत्य के लिए अलग अलग अकादमी बनी हुई हैं जहाँ आज के छात्र-छात्राएँ नृत्य सीखने जाते हैं।

यहाँ की लिखित भाषा अंग्रेज़ी है। बाकी सबकी बोलियाँ अलग हैं। यहाँ के निवासी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते। पर्यटकों का सम्मान करते हैं तथा स्वभाव से अत्यंत मिलनसार होते हैं।

हमारी आगे आसाम और मेघालय की यात्रा तय थी इसलिए तीन दिन हम दीमापुर में रहे फिर तीन दिन हमने हॉर्नबिल फेस्टीवल का आनंद लिया और फिर अगली यात्रा के लिए रवाना हुए। अगली यात्रा काजीरंगा, शीलाँग, चेरापूंजी आदि स्थानों  की ओर थी। अतः हम पुनः दीमापुर लौट आए। एक रात रहकर अगली यात्रा प्रारंभ की।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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