श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “चलना है बाकी…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
कहाँ तय हुआ
फ़ासला दुख भरा
अभी कंटकों में चलना है बाकी।
वही रोज़ की
चिकचिकों से घिरा
दिन उजाले को ले
सूर्य द्वारे खड़ा
शाम अख़बार सी
एक बासी ख़बर
तम से हर रात
दीपक अकेला लड़ा
कहाँ क्या हुआ
रोती अब भी धरा
अभी पीर का तो गलना है बाकी।
नियम कायदे
जैसे मजबूरियाँ
घुल रही ख़ून में
एक ज़िंदा हवस
ओढ़कर बेबसी
पाँव यायावरी
लौट आये वहीं
जिस जगह थे तमस
लादकर बेड़ियाँ
श्रम हुआ अधमरा
अभी मंज़िलों पर पहुँचना है बाकी।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈