श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “जड़ों पर हो वार…… ”।)
☆ तन्मय साहित्य #178 ☆
☆ जड़ों पर हो वार…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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जिन जड़ों से पुष्ट-पोषित,
फूल, फल, पत्ते विषैले
उन जड़ों पर वार हो।
केक्टस से गर करें उम्मीद
करुणा, दया औ’ संवेदना की
म्रत पड़े हैं हृदय, उनसे
मानवीय संचेतना की
फिर नहीं विष बीज फैले
फिर न खरपतवार हो।….
एक दिन तो है सुनिश्चित अंत,
मुरझा कर धरा पर गिरेंगे ही
ये चमक उन्माद-मस्ती
राख बन फिर सिरेंगे ही
आत्मघाती कृत्य क्यों
फिर व्यर्थ नर संहार हो।….
जन्म से अवसान तक के खेल
खेले निरंकुश होकर निराले
कब कहाँ सोचा कि इनमें
कौन उजले, कौन काले,
जी सकें तो जिएँ ऐसे
ना किसी पर भार हों।….
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈