श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “यायावर यात्राएँ…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ यायावर यात्राएँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हर शुरुआत का
होता है अंत कभी
यायावर यात्राएँ
होती हैं अंतहीन
धूप गाँठ में बाँधे
चल रही विरासत
कंठ में उतरती है
घूँट भर इबारत
भटके हैं बंजारे
चलते जो दिशाहीन।
शब्दों के महाजाल
अर्थवान मछली
प्यास के समुंदर में
नाच रही बिजली
चाँद के झरोखे से
झाँकते तमाशबीन।
दूध के कटोरे में
रोटी के ख़्वाब
मरे पड़े ग्रंथालय
बंद हर किताब
हो गया सियासत में
मुखपृष्ठ तक अधीन।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈