श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक माइक्रो व्यंग्य – “खामोशी की आवाज…”।)
☆ माइक्रो व्यंग्य # 186 ☆ “खामोशी की आवाज…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
चूहा – प्रिये, देख लिया न मेरा जलवा,मेरे जीते-जी किसी की हिम्मत नहीं है कि कोई मेरे बिल में हाथ डाले, एक मेहमान आये थे तो कुछ बिल्ले चिल्ला रहे थे कि इस चूहे के बिल को हेडक्वार्टर बनाने की घोषणा कर दो, यहां ‘जे’ कर दो यहां ‘वो’ कर दो। प्रिये, तुम देख तो रही हो, बहुत आये और गए, हम अपने बिल के क्षेत्र को सबसे पिछड़ा क्षेत्र बनाना चाहते हैं, जहां कोई घुस न सके, विकास से कोसों दूर रखना चाहते हैं, ताकि लोग हजारों साल बाद भी याद रखेंगे कि चूहों को ऐसा भी सरदार मिला था, जो सबको खामोशी से कुतर देता था। भूल जाओ विकास। विकास का मतलब जानते नहीं और विकास -विकास का पहाड़ा पढ़ते हो।
चुहिया – मुझे प्रिये मत बोलना समझे। तुमने हम लोगों को ठगा है जीवन भर से तुम जिस थाली में खाते रहे उसी में छेद करते रहे, क्रीम लगाकर गोरे बनने का कितना भी प्रयास करो मन काला है तुम्हारा। हमारी खामोशी का मजाक मत उड़ाओ…
‘कभी-कभी खामोशी की आवाज
खंजर से भी खतरनाक होती है..!’
© जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈