श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…”)

? ग़ज़ल # 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बेचारगी में ग़म रहा बेहिसाब,

मुसलसल आता रहा बेहिसाब।

गरम ठंडा तूफ़ान खूब गुज़रा,

इनका भी रखना पड़ा हिसाब।  

अदब की महफ़िलें आबाद रहीं,

मेहरून्निसा संग आया महताब।

दुश्मन हर चाल सोचकर रखता,

दाव दोस्तों का खासा लाजवाब।  

फलक से डोली में आएगी हसीना,

‘आतिश’ यही नियति का इंतख़ाब।  

* इंतख़ाब – चुनाव

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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