श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लिखो स्वागतम…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 08 ☆ लिखो स्वागतम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
खोल खिड़कियाँ
दरवाज़ों पर लिखो स्वागतम
ख़ुशियों से भर दो आँगन को।
अभी बादलों का फेरा है
अंधकार ने भी घेरा है
घोर निशा में पथ न सूझे
अंतस में दुख का डेरा है
तोड़ संधियाँ
दुविधाओं को जीतो हरदम
इतना छोटा करो न मन को।
ऊबड़-खाबड़ वाले बंजर
उगते हैं आक्रोश निरंतर
पर बैठे हैं बीज भरोसे
देख रहे सपनीला मंजर
ओढ़ बिजलियाँ
संकल्पों की,जीतो हर तम
भरो उजालों से जीवन को।
बरस दर बरस आते रहते
दिन चरखे पर गाते रहते
समय किसी की बाट न जोहे
मौसम आते-जाते रहते।
बनें सुर्ख़ियाँ
ऐसा कुछ तो कर जाओ तुम
तिलक लगा माटी चंदन को।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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