श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “दूर बहुत मत जाना…”।)
ग़ज़ल # 76 – “दूर बहुत मत जाना…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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मरघट जैसी आग लगी गलियों ओ चौबारों में,
बारूदो अस्लाह मिल रहे मस्जिद गुरुद्वारों में।
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जाकर बैठें किस दर थोड़ी सांस भर मिलती जाये,
नफरत के छींटे ना आएँ घृणा की बौछारों में।
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फ़ेसबुक पर सब लेते दिखते हैं माँ सेवा का व्रत,
जीवित माँ झाँके वृद्ध आश्रम के बंद किवारों में।
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हाथ पर रखा सब कुछ मिल जाए हरेक की चाह यही,
ये ही आशा ले जाती चोरों के बाज़ारों में।
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आओ दूर तलक साथ दिखलाएँ खेल ज़माने का,
हर कोई दौड़ रहा जैसे जाना हो तारों में।
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गोकुल कृष्ण का यही है और यही कंस की मथुरा,
क़ाबिज़ भूमाफिया जमुना के हर कोर कछारों में।
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आतिश तुम जाते हो जाओ दूर बहुत मत जाना,
इंतज़ार बढ़ता जाता आते तीज त्योहारों में।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈