श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी एक मालवो मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक मालवी कथा एवं उसका हिंदी भावानुवाद “ चिंता / फिकर ” बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #29 ☆
☆ हिन्दी लघुकथा – चिंता☆
“अरे किसन ! लाठी ले कर किधर जा रहा है ? मछली खाने की इच्छा है ?”
“नहीं रे माधव ! गर्मी में पांच मील पानी लेने जाना पड़ता है. उसी का इंतजाम करना चाहता हूँ.”
“इस लाठी से ?” किसन से लम्बी और भारी लाठी देख कर माधव की हंसी छुट गई.
“हंस क्यों रहा है माधव. पिताजी की लाठी से डर कर मैं स्कूल जाना छोड़ सकता हूँ तो नदी बहना क्यों नहीं छोड़ सकती है ?”
☆ लघुबाता – फिकर (मालवी) ☆
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“अरे ओ किसनवा ! लठ ले के कठे जा रियो हे ? मच्छी मारवा की ईच्छा हे कई ?”
“नी रे , माधवा ! गरमी मा पाच कौस पाणी लेवा नी जानो पड़े उको बंदोबस्त करी रियो हु.”
“ई लाठी थी ?” किसनवा से मोटी व वजनी लाठी देख कर माधवा की हंसी छुट गइ.
“हंस की रियो रे माधवा. बापू की लाठी से डरी ने मूँ सकुल जानो रुक सकू तो ये नदि का नी रुक सके”
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”