डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुम अच्छी लगती हो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 141 – तुम अच्छी लगती हो…
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लोग बुरा कहते है मुझको
तुम मुझको अच्छी लगती हो।
जाने तुममें ऐसा क्या है।
अनजाने ही यह लगाव है
तुम जाने क्या सोचा करती
मेरे मन में एक भाव है
ओ, मनभावन सच कहता हूँ
तुम मुझको अच्छी लगती हो।
ऐसा मन पाया है तुमने
जैसे बिल्कुल निर्मल जल हो
धुला धूप में तन है जैसे
दूध नहाया रक्त कमल हो।
राजकुमार अभावों का मैं
तुम मुझको अच्छी लगती हो।
चाहे दूर दृष्टि से हो पर
हरदम मेरे आसपास हो
जब चाहे छूलूँ मैं तुमको
इन प्राणों के बहुत पास हो।
जाने मैं कैसा लगता हूँ
तुम मुझको अच्छी लगती हो।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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